आकाश की नीरवता में टंगा वह शांत, सौम्य और चिर—परिचित चंद्रमा मानव भावनाओं का सबसे पुराना साथी माना जाता है। उसकी चाँदनी में प्रेमियों ने सपने बुने, कवियों ने रूपक गढ़े और ऋषियों ने उसके योग—नक्षत्रों में भविष्य के संकेत देखे। परंतु इन सबके बीच एक प्रश्न सदियों से मानव जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है—आख़िर यह चंद्रमा आया कहाँ से?
क्या यह किसी दैवी योजना का हिस्सा था, जैसा कि शास्त्र कहते हैं?
या फिर यह वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए किसी महान ‘कॉस्मिक इवेंट’—एक खगोलीय दुर्घटना का परिणाम है?
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यह प्रश्न जितना पुराना है, उसका उत्तर उतना ही रहस्यमय। एपिसोड-2 में हम आपको उसी रहस्यलोक में लिए चलते हैं—जहाँ विज्ञान और आध्यात्म, तथ्य और विश्वास, तर्क और अनुभूति—all एक अद्भुत संगम रचते हैं।
🌑 शास्त्रों में चंद्रमा—देवताओं का उज्ज्वल प्रतीक
भारतीय ग्रंथ चंद्रमा को एक देव रूप में देखते हैं—शीतलता, शांति और चेतना के प्रतीक के रूप में। चंद्रमा मन का अधिपति माना गया है—“चंद्रमा मनसो जातः”—मन से उत्पन्न।
चंद्रमा को सोम, रोहिणी के पति, और अमृत के वाहक का दर्जा दिया गया है।
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वेदों में वर्णित है कि चंद्र तेज से आकाश प्रकाशित रहता है और जल, औषधियों तथा ऋतुओं के चक्र को नियंत्रित करता है।
इन ग्रंथों में चंद्रमा किसी दुर्घटना या विनाश का परिणाम नहीं, बल्कि सृष्टि की सुविचारित योजना का अंग माना गया है—एक ‘दैवी लीला’, जिसने प्रकृति को संतुलन दिया।
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परंतु विज्ञान की कहानी बिल्कुल अलग दिशा में ले जाती है…
🌔 विज्ञान की दृष्टि: एक महाविनाश जिसने जन्म दिया चांद को
विज्ञान की सबसे स्वीकार्य थ्योरी है—
The Giant Impact Hypothesis (महाटक्कर सिद्धांत)
लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले, जब पृथ्वी अभी नवयुवा थी—धधकती, पिघली हुई, रूप लेती हुई—तभी उसके साथ हुआ इतिहास का सबसे बड़ा खगोलीय हादसा।
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📌 यह हादसा कैसे हुआ?
एक मंगल आकार की वस्तु—जिसे वैज्ञानिक ‘थीया (Theia)’ कहते हैं—अंतरिक्ष में तेजी से घूमते हुए नवगठित पृथ्वी से टकराई।
यह टक्कर इतनी भीषण थी कि—
पृथ्वी का बड़ा हिस्सा पिघलकर अंतरिक्ष में उछल गया,
लाखों–करोड़ों टन सामग्री पृथ्वी की कक्षा में फैल गई,
कुछ ही समय में उस सामग्री से एक रिंग बनी,
और फिर धीरे-धीरे उन कणों के जुड़ने से बना—हमारा चंद्रमा।
विज्ञान कहता है कि चंद्रमा एक विनाश से पैदा हुआ… पर वह विनाश हमारे लिए वरदान साबित हुआ।
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🌕 पृथ्वी के जीवन में चंद्रमा क्यों है अनिवार्य?
यदि चंद्रमा न होता, तो पृथ्वी का जीवन वैसा नहीं होता जैसा हम देखते हैं।
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स्थिर अक्ष—स्थिर जीवन पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है। यही झुकाव ऋतुएं बनाता है। चंद्रमा इस झुकाव को स्थिर रखता है।
बिना चंद्रमा के—पृथ्वी का झुकाव 0° से 85° तक बदल सकता था,
मौसम अनिश्चित होते,जीवन का विकास ठहर सकता था।
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समुद्र की लहरों का हृदय—ज्वार–भाटा चंद्रमा पृथ्वी के जल को खींचता है।ज्वार–भाटा समुद्री जीवन और मौसम चक्र के लिए जीवनरेखा हैं।रात्रि का प्राकृतिक प्रकाश सदियों तक चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र नाइट—लैंप रहा है।आदिकालीन मानव सभ्यता की रात्रि यात्राएं, पर्व, खेती, समय गणना—सभी कुछ चंद्रमा की रोशनी पर आधारित रहे।
🌖 चंद्रमा—आस्था और विज्ञान के बीच सेतु
दिलचस्प यह है कि जहाँ विज्ञान चंद्रमा को एक खगोलीय टक्कर का परिणाम बताता है, वहीं शास्त्र इसे स्थिरता, शांति और चेतना का प्रतीक मानते हैं।
पर दोनों की कहानियों में एक अद्भुत समानता है ।चंद्रमा न होता, तो पृथ्वी पर जीवन का संतुलन भी न होता।
विज्ञान कहता है—“चंद्रमा पृथ्वी को स्थिर रखता है।”शास्त्र कहते हैं—
“चंद्रमा मन और प्रकृति की स्थिरता का देव रूप है।”
दोनों इस सच्चाई पर मिलते हैं कि चंद्रमा पृथ्वी का ‘संरक्षक’ है—बाह्य स्तर पर भी और आध्यात्मिक स्तर पर भी।
🌒 भविष्य का चंद्रमा—क्या हम उसे फिर पहचान पाएंगे?
विज्ञान कहता है कि चंद्रमा धीरे-धीरे पृथ्वी से दूर जा रहा है—
हर साल 3.8 सेंटीमीटर।एक दिन, करोड़ों वर्ष बाद—ज्वार कमज़ोर हो जाएंगे,ग्रहण दुर्लभ हो जाएंगे,चंद्रमा आकाश में छोटा दिखाई देगा।
पर तब तक यह मानव सभ्यता को अनगिनत प्रेरणाएँ दे चुका होगा।
🌕 चंद्रमा: जन्म भी रहस्य, भविष्य भी रहस्य
चंद्रमा की उत्पत्ति की कहानी विनाश और सृजन दोनों का मिश्रण है।
शास्त्र इसे देवत्व का उद्गम कहते हैं, विज्ञान इसे आग और टक्कर का परिणाम बताता है। पर सच यह है कि—चंद्रमा पृथ्वी का मौन संरक्षक है,भावनाओं का चिरसखा है,और सौंदर्य का अनन्त प्रतीक।
