
आज
मैं पहली बार
मन्दिर की ओर चल पड़ा
घण्टों वहाँ बैठा रहा
और जब घर लौटा —
तो रात भर बस यही सोचता रहा
कि वर्षों तक
मैं ईश्वर का खण्डन करता रहा
क्या वह सही था?
जबकि आज, पहली बार —
मुझे जीवन में
इतना शान्ति और सुकून मिला।
मैं लगातार सोचता रहा —
वो कौन-सी ऊर्जा थी
मन्दिर परिसर में
जो मुझे आज
इस सोच तक ले आई —
कि मैं गलत था।
-प्रतीक झा ‘ओप्पी’
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
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