कौन हिसाब रखे किसको कितना
मिला और किसने कितना बचाया,
माया व शरीर दोनों आनी जानी हैं,
इनको क्या कोई कभी बचा पाया।
ईश्वर ने है आसान गणित लगाया,
सबको खाली हाथ ही भेज दिया,
और खाली हाथ वापस बुलाया,
हमने घमंड किस बात का किया।
प्रकृति अपने मोह- माया में ऐसे
फंसा लेती है कि हम सब अपना
वास्तविक स्वरूप भूल जाते हैं,
उसी मायाजल में उलझ जाते हैं।
अपना सत्य स्वरूप जानना चाहते हैं,
तो आसान तरीके से जान सकते हैं,
हम लोग अपने को जान भी जायेगें,
मान जायेगें, देखकर समझ जायेंगें।
प्रत्येक दिन सुबह उठकर ध्यान करें,
कि मैं इस संसार में बालक रूप में
मुट्ठी बंद कर आया और मेरी मृत्यु
होने के बाद ख़ाली हाथ जा रहे हैं।
फिर बीच में कैसा घमण्ड हो रहा है,
जो सुबह अपने मृत्यु को देख लेते हैं,
उनको शाम तक प्रकृति मोह-माया
के चंगुल में कभी नहीं फंसा पाती है।
उनका हंसता खेलता हुआ पुष्प
जैसा चेहरा कभी नहीं मुरझाता है
और वह मुरझाये हुये पुष्प को भी
तब खिला हुआ देखना चाहते हैं।
फिर पता चलता है, कि नहीं
किसी को कुछ दिया, और नहीं
किसी से कुछ लिया, नहीं किसी
से कुछ लेने की आकांक्षा ही है।
क्योंकि यह सत्य हम सब लोगों को
पता है कि मुट्ठी बंद किये आये हैं,
और आदित्य हाथ पसारे जायेंगें,
कुछ लेकर आये, न लेकर जाएँगे।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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