बड़ा सवाल कैसे चला साहब का 15 साल की बिना बेतन ?

लखनऊ।(राष्ट्र की परम्परा डेस्क) यूपी के लोक निर्माण विभाग (PWD) में एक हैरान करने वाला मामला सुर्खियों में है। विभाग में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत अधिकारी सत्यवीर (नाम परिवर्तित) ने 2004 से 2010 तक सेवाएं तो दीं, लेकिन इस अवधि में उन्होंने कभी भी वेतन का दावा नहीं किया। विभाग ने भी अपनी ओर से भुगतान की पहल नहीं की। अब करीब 15 साल बाद अधिकारी ने बकाया वेतन की मांग उठाई, तो पूरे महकमे में खलबली मच गई।

सवालों की बौछार इस मामले ने अफसरशाही की कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।जब अधिकारी को छह वर्षों तक तनख्वाह नहीं मिली तो घर का खर्च कैसे चला? बच्चों की पढ़ाई, परिवार की जिम्मेदारी आखिर किस सहारे पूरी हुई? विभाग ने इतने लंबे समय तक इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया?

लापरवाही या रहस्य? विभागीय सूत्रों का कहना है कि वेतन मांग में देरी खुद अधिकारी की लापरवाही से हुई। नियुक्ति, सेवा अवधि और फाइलों से जुड़े दस्तावेज समय रहते दावे में नहीं लगाए गए। वहीं, अधिकारी का अचानक 15 साल बाद वेतन मांगना अब विभाग के लिए सिरदर्द बन गया है।

प्रणाली पर भी उठे सवाल मामला सिर्फ एक अधिकारी की लापरवाही तक सीमित नहीं दिखता। यह विभाग की सुस्ती और जवाबदेही की कमी को भी उजागर करता है। आमतौर पर वेतन बिल न बनने पर विभागीय स्तर से स्वतः संज्ञान लिया जाना चाहिए था। मगर इस प्रकरण में न अधिकारी ने आवाज उठाई, न ही विभाग ने कोई कार्रवाई की।

आगे क्या? अब फाइलों के खुलने और वेतन मांग की चिट्ठी पहुंचने के बाद विभाग कानूनी पहलुओं की जांच में जुट गया है। नियमों के तहत इतनी लंबी अवधि के बाद भुगतान संभव होगा या नहीं, इस पर मंथन जारी है।

यह घटना विभागीय सुस्ती, अफसर की लापरवाही और प्रशासनिक तंत्र की खामियों को एक साथ उजागर कर रहा है। अब सबकी नजर इस पर है कि क्या अधिकारी को 15 साल बाद बकाया वेतन मिलेगा या मामला नियमों की भेंट चढ़ जाएगा।