राष्ट्र की परम्परा डेस्क दिलीप पाण्डेय– एक प्रेरक कहानी
समाज में अक्सर कहा जाता है कि “जैसा भेष, वैसा आचरण होना चाहिए।” लेकिन कई बार नाम और पहनावा तो ताक़तवर दिखाई देते हैं, पर भीतर का साहस लड़खड़ा जाता है। इसी सत्य को दर्शाती एक प्रेरक और सीख से भरी कहानी आजकल खूब चर्चा में है—“शमशेर का शेर, पर कुत्ते से डर?” यह कहानी बताती है कि नाम बड़ा होना या शस्त्र हाथ में होना ही साहस की निशानी नहीं, बल्कि वास्तविक पहचान हमारे व्यवहार, चरित्र और आत्मविश्वास से बनती है।
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कहानी की शुरुआत – शमशेर और उसका पुत्र ‘शेर’
एक गांव में शमशेर नाम का व्यक्ति रहता था। नाम से लगता था जैसे वह अत्यंत पराक्रमी होगा। उसने अपने पुत्र का नाम भी “शेर” रखा, ताकि लोग दूर से ही समझ जाएं कि यह किसी योद्धा का बेटा है। घर में पुरखों से मिली एक पुरानी बंदूक भी थी, जिसे वे शान की निशानी मानते थे।
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समय बीतता गया, और शेर बड़ा हुआ। नाम तो शेर था, पर स्वभाव में डर और घबराहट साफ झलकती थी। पिता उसे हमेशा समझाते—
“बेटा, नाम शेर है तो आचरण भी शेर जैसा होना चाहिए।”
लेकिन बेटे की आदतें बदलने का नाम नहीं लेतीं।
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घटना जिसने सच्चाई उजागर कर दी।
एक दिन दोनों सुबह खेतों की ओर जा रहे थे। शेर के हाथ में परिवार की वही प्रतीकात्मक बंदूक थी जिसे वे गौरव की वस्तु मानते थे। रास्ता सुनसान था। तभी सामने से एक कुत्ता भौंकने लगा।
कुत्ता साधारण था, पर आवाज़ तेज़ थी। बस इतनी सी बात होते ही शेर की हालत खराब—हाथ कांपने लगे, बंदूक लड़खड़ाने लगी, और चेहरा पीला पड़ गया।
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शमशेर ने हैरानी से पूछा—
“अरे बेटा! क्या हुआ? बंदूक हाथ में है, फिर इतना क्यों कांप रहे हो?”
शेर ने डरते-डरते उत्तर दिया—
“बाबा… कुत्ता भौंक रहा है।”
उसका जवाब सुनकर शमशेर कुछ क्षण स्तब्ध रह गया।
उन्होंने धीरे से कहा—
“बेटा, भेष और नाम से कुछ नहीं होता। अगर भीतर साहस न हो तो बंदूक भी बेकार और शेर जैसा नाम भी व्यर्थ।”
कहानी का संदेश – असली ताकत भीतर होती है
यह कहानी हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाती है—
“भेष के अनुरूप करे आचरण”—यह सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि जीवन का सूत्र है।
शमशेर और उसके पुत्र शेर की कहानी हमें याद दिलाती है कि—
नाम बड़ा होने से इज़्ज़त नहीं मिलती,
बल्कि आचरण बड़ा होने से व्यक्तित्व चमकता है।
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