Wednesday, December 3, 2025
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जहां वीरता ने भक्ति से हाथ मिलाया: हनुमान जी का दिव्य प्रवेश

हनुमानजी का श्रीराम से मिलन की अलिखित भूमिका

हनुमान जी का पम्पापुर जाना कोई साधारण यात्रा नहीं थी। यह एक ऐसी दिव्य घटना का प्रारंभ था, जिसने त्रेतायुग की दिशा बदल दी। यह उस महान संबंध की नींव थी, जो आगे चलकर श्रीराम और महाबली हनुमान के बीच एक अमर, अटूट और अविनाशी बंधन के रूप में स्थापित हुआ। पम्पा सरोवर की पावन भूमि पर रखा गया यह पहला चरण केवल एक भौगोलिक आगमन नहीं था, बल्कि धर्म, भक्ति, कर्तव्य और समर्पण की महागाथा का उद्घोष था।

पम्पापुर – आज का प्रसिद्ध “हंपी” – ऋषि मतंग की तपोभूमि और शबरी माता की आस्था की भूमि मानी जाती है। यहीं पर बाली के भय से व्यथित सुग्रीव अपने थोड़े से वानर साथियों के साथ शरण लिए हुआ था। यही वह समय था जब हनुमान, जो सुग्रीव के परम बुद्धिमान मंत्री और हितैषी थे, दूर से एक दिव्य तेज से युक्त दो राजकुमारों को वन में विचरण करते देख लेते हैं।

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जैसे ही हनुमान जी की दृष्टि श्रीराम और लक्ष्मण पर पड़ी, वैसे ही उन्हें अंतर्मन में एक अद्भुत स्पंदन का अनुभव हुआ। यह कोई सामान्य मानव नहीं थे। मर्यादा, तेज, शांति और करुणा का जो सम्मिलित स्वरूप उन्होंने देखा, वह उन्हें भीतर तक झकझोर गया। तभी उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर विनम्रता से प्रश्न किया—
“आप दोनों कौन हैं, जो इस घोर वन में भी दिव्य आभा से शोभित हैं?”

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यह संवाद इतिहास नहीं, अध्यात्म का शिखर है। यहीं से आरंभ होती है उस भक्ति की कहानी, जो आगे चलकर सीता माता की खोज, लंका दहन, संजीवनी और रावण वध जैसी महान घटनाओं का आधार बनी। हनुमान जी ने जब श्रीराम का परिचय जाना, तब उनके मन में संपूर्ण समर्पण का भाव जागृत हुआ। उन्होंने वहीं मन-ही-मन संकल्प कर लिया—
“अब मेरा जीवन इन्हीं प्रभु की सेवा के लिए है।”

हनुमान जी ने श्रीराम को सुग्रीव से मिलने का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव केवल एक राजनीतिक या सैन्य गठबंधन का आरंभ नहीं था, बल्कि यह धर्म और न्याय की विजय का संकल्प था। पम्पापुर से किष्किंधा तक का यह मार्ग, इतिहास के सबसे पवित्र मार्गों में से एक बन गया—जहां श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमान साथ-साथ चले। उस मार्ग पर न शब्द अधिक थे, न प्रश्न, केवल अनुभूति थी… एक अटूट भरोसे की।

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सरलता, विनम्रता और सेवा का जो स्वरूप हनुमान जी ने उस समय दिखाया, वह आज भी मानवता के लिए एक आदर्श है। उनका बल, उनकी बुद्धि, उनका पराक्रम बाद में संसार ने देखा, परंतु पम्पापुर की उसी भूमि ने उनकी सच्ची पहचान – एक भक्त, एक सेवक और एक राम-आज्ञाकारी योद्धा – को जन्म लेते देखा।

यह वही क्षण था जब श्रीराम के कार्यों को दिशा मिली और हनुमान को जीवन की सार्थकता। उस दिन वन में केवल दो पुरुष नहीं मिले थे, बल्कि भगवान और भक्ति का मिलन हुआ था। और जब यह दो शक्ति एक हुईं, तब संसार में अधर्म टिक नहीं सका।

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पम्पापुर का वह मौन साक्षी रहा —
एक युगपुरुष का आगमन
एक भक्त का समर्पण
और एक युद्ध का बीजोत्पत्ति
आज भी जब हम हनुमान जी का स्मरण करते हैं, तो उनके बल, पराक्रम और वीरता के साथ-साथ उस पल को भी स्मरण करते हैं जब उन्होंने पहली बार श्रीराम की ओर झुककर कहा था—
“प्रभु, अब मैं आपका हूँ।”
यही वाक्य भक्ति का चरम है। यही वाक्य इतिहास है। यही वाक्य रामायण की आत्मा है।

हनुमानजी की कथा का 5 वा एपिसोड है।

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