24 अक्टूबर : जब विदा हुए युगपुरुष — भारतीय इतिहास के प्रेरणास्रोतों को श्रद्धांजलि
भारत का इतिहास केवल वीरता और उपलब्धियों का ही नहीं, बल्कि उन महान आत्माओं की स्मृतियों का भी है जिन्होंने अपने विचार, कर्म और प्रतिभा से देश की आत्मा को आकार दिया। 24 अक्टूबर का दिन इतिहास में ऐसे कई विभूतियों के निधन का साक्षी है, जिन्होंने राजनीति, साहित्य, संगीत और दर्शन के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। आइए इस विशेष तिथि पर उन महान विभूतियों को नमन करते हुए उनके जीवन, योगदान और प्रेरणाओं को याद करें।
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- सीताराम केसरी (1919–2000): भारतीय राजनीति के संयमित सेनापति
सीताराम केसरी का जन्म 15 नवंबर 1919 को बिहार राज्य के पटना जिले में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा और महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रभावित होकर कांग्रेस से जुड़ गए।
राजनीतिक जीवन में वे कई बार सांसद रहे और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद तक पहुंचे। 1996 से 1998 तक उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उनकी राजनीतिक शैली सौम्यता, संतुलन और संगठनात्मक क्षमता के लिए जानी जाती थी। गरीबों, किसानों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए वे हमेशा समर्पित रहे। 24 अक्टूबर 2000 को उनका निधन हुआ। उनकी सादगी और संगठन के प्रति निष्ठा भारतीय राजनीति के इतिहास में मिसाल है। - ये भी पढ़ें –विज्ञान से कला तक – 24 अक्टूबर को जन्मे भारत के उज्ज्वल नक्षत्र
- ग्लेडविन जेब (1900–1996): संयुक्त राष्ट्र के प्रथम कार्यवाहक महासचिव
ग्लेडविन जेब, जिन्हें सर ग्लेडविन जेब के नाम से जाना जाता है, का जन्म 25 अप्रैल 1900 को इंग्लैंड के यॉर्कशायर में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध ब्रिटिश राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के कुशल विशेषज्ञ थे। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षित जेब ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शांति की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वे 1945 में संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय कार्यवाहक महासचिव नियुक्त किए गए थे और 1946 तक इस पद पर रहे, जब तक ट्राईग्वे ली को स्थायी महासचिव नहीं बनाया गया। उनकी नीतियों ने संयुक्त राष्ट्र की प्रारंभिक संरचना और कार्यप्रणाली को दिशा दी। 24 अक्टूबर 1996 को उनके निधन के साथ विश्व कूटनीति ने एक महान मार्गदर्शक खो दिया। - इस्मत चुग़ताई (1915–1991): नारी चेतना की अग्रदूत लेखिका
इस्मत चुग़ताई का जन्म 21 अगस्त 1915 को बदायूं, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे उर्दू साहित्य की सबसे बेबाक और क्रांतिकारी महिला लेखिकाओं में गिनी जाती हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने महिलाओं के अधिकार, लैंगिक समानता और समाज की कुरीतियों पर अपनी कलम से तीखे प्रहार किए।
उनकी प्रसिद्ध कहानियों — लिहाफ, टेढ़ी लकीर, और घरवाली — ने न केवल उर्दू साहित्य में नई दिशा दी बल्कि स्त्री विमर्श की शुरुआत की। इस्मत की लेखनी समाज के दोहरे मानदंडों पर करारा प्रहार थी। 24 अक्टूबर 1991 को मुंबई में उनका निधन हुआ। वे आज भी हर उस महिला की आवाज हैं जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। - ये भी पढ़ें –अति स्वतंत्रता या संस्कारों की हार? सोशल मीडिया की चकाचौंध में खोती जा रही मानवता”
- रफ़ी अहमद क़िदवई (1894–1954): किसानों और मज़दूरों के सच्चे हमदर्द
रफ़ी अहमद क़िदवई का जन्म 18 फरवरी 1894 को बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
कांग्रेस के अग्रणी नेता और स्वतंत्र भारत के पहले संचार मंत्री के रूप में उन्होंने देश में डाक सेवाओं और संचार व्यवस्था को मजबूत किया। वे एक सच्चे समाजसेवी और जननेता थे जिन्होंने ग्रामीण विकास, खाद्य वितरण और सामाजिक समानता के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया। 24 अक्टूबर 1954 को उनकी मृत्यु हुई। आज भी “क़िदवई हॉल” और “रफ़ी क़िदवई पुरस्कार” उनके कार्यों की स्मृति को जीवंत रखते हैं। - धरमपाल (1922–2006): गांधीवादी विचारों के मर्मज्ञ इतिहासकार धरमपाल का जन्म 19 फरवरी 1922 को काशीपुर, उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे एक प्रख्यात विचारक, इतिहासकार और गांधीवादी थे जिन्होंने भारतीय सभ्यता की गौरवशाली परंपरा को पुनः प्रतिष्ठित किया।
उनका शोधकार्य — The Beautiful Tree, Indian Science and Technology in the Eighteenth Century — भारतीय शिक्षा व्यवस्था और तकनीकी ज्ञान के स्वदेशी स्वरूप पर प्रकाश डालता है। उन्होंने दिखाया कि भारत उपनिवेश काल से पहले ज्ञान, विज्ञान और नैतिकता का केंद्र था। 24 अक्टूबर 2006 को उनके निधन के साथ भारत ने एक ऐसे चिंतक को खो दिया जिसने आत्मगौरव की भावना जगाई। - ये भी पढ़ें –🌏“24 अक्टूबर का इतिहास: जब दुनिया ने रचा नए युगों का सूत्रपात”
- मन्ना डे (1919–2013): सुरों के अमर साधक
मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। वे भारतीय संगीत के स्वर्ण युग के महान पार्श्वगायक रहे। मैट्रिक के बाद उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और संगीत की शिक्षा अपने चाचा कृष्णचंद्र डे से ली।
उनकी आवाज़ में शास्त्रीयता और मधुरता का अद्भुत संगम था। “आये मेरी ज़मीं”, “ये रात भीगी भीगी”, “लागा चुनरी में दाग” जैसे गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजते हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण (2005) और पद्म विभूषण (2007) से सम्मानित किया। 24 अक्टूबर 2013 को बेंगलुरु में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी आवाज़ सदा अमर रहेगी। - गिरिजा देवी (1929–2017): ठुमरी की रानी
गिरिजा देवी का जन्म 8 मई 1929 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्हें “ठुमरी की रानी” कहा जाता था। उन्होंने संगीत की शिक्षा पंडित सरजू प्रसाद मिश्रा से प्राप्त की और बनारस घराने की इस शैली को नई ऊंचाई दी।
उनकी गायकी में शास्त्रीयता, लोकधुन और भावनाओं का अनोखा संगम था। ठुमरी, चैती, कजरी और दादरा में उनकी पकड़ अद्भुत थी। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी में अध्यापन कर संगीत की परंपरा को जीवंत रखा। पद्म विभूषण (2016) से सम्मानित गिरिजा देवी का निधन 24 अक्टूबर 2017 को हुआ। वे भारतीय संगीत के आकाश की अमर स्वर साधिका हैं। - टी. एस. मिश्रा (1914–2005): प्रशासनिक कुशलता के प्रतीक
टी. एस. मिश्रा का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। वे एक उत्कृष्ट प्रशासक और कुशल राजनेता रहे। भारतीय प्रशासनिक सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने के बाद उन्हें असम राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
उनका कार्यकाल सदैव ईमानदारी, अनुशासन और विकासोन्मुख दृष्टिकोण के लिए जाना गया। शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उन्होंने कई पहल कीं। 24 अक्टूबर 2005 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनके कार्य आज भी प्रेरणा देते हैं कि प्रशासन केवल शासन नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम है।
24 अक्टूबर केवल एक तिथि नहीं, बल्कि स्मृति और प्रेरणा का दिवस है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जिन विभूतियों ने इस दिन विदा ली, उन्होंने अपने कर्मों से राष्ट्र के निर्माण में अमिट योगदान दिया। राजनीति से लेकर संगीत तक, इतिहास से लेकर समाज तक — उन्होंने भारत की आत्मा को समृद्ध किया।
