Tuesday, October 28, 2025
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जब देश ने खो दिए अपने युगद्रष्टा और प्रतिभा के प्रतीक

इतिहास के पन्नों में 28 अक्टूबर का दिन केवल तिथियों का जोड़ नहीं है, बल्कि यह वह दिन है जब भारत और विश्व ने कई ऐसी महान आत्माओं को खोया जिन्होंने अपने जीवन से समाज, साहित्य, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। इन विभूतियों का निधन केवल एक व्यक्ति का अंत नहीं, बल्कि एक युग की समाप्ति था। आइए जानते हैं उन महान हस्तियों के जीवन, योगदान और उनके प्रेरणास्रोत कार्यों के बारे में—

  1. डॉ. माधवन कृष्णन नायर (2021) – कैंसर चिकित्सा के प्रणेता
    केरल राज्य के निवासी डॉ. माधवन कृष्णन नायर भारत के प्रसिद्ध ऑन्कोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने कैंसर उपचार के क्षेत्र में अपनी असाधारण सेवाओं से देश को गौरवान्वित किया। वे क्षेत्रीय कैंसर केंद्र (Regional Cancer Centre, तिरुवनंतपुरम) के संस्थापक निदेशक रहे।
    उनका जन्म केरल के एक साधारण परिवार में हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा चिकित्सा विज्ञान में उच्च स्तर तक पूरी की। एमबीबीएस और ऑन्कोलॉजी में विशेष प्रशिक्षण के बाद उन्होंने कैंसर रोगियों के लिए अत्याधुनिक उपचार सुविधाएँ विकसित कीं।
    उनके निर्देशन में आरसीसी देश का एक अग्रणी कैंसर उपचार संस्थान बना, जहां सैकड़ों मरीजों को नई जिंदगी मिली। उन्होंने न केवल चिकित्सा विज्ञान को आगे बढ़ाया बल्कि स्वास्थ्य सेवा के मानवीय मूल्यों को भी नई परिभाषा दी। 2021 में उनके निधन से चिकित्सा जगत ने एक सच्चा मार्गदर्शक खो दिया।
  2. शशिकला काकोदकर (2016) – गोवा की जननायिका
    शशिकला काकोदकर, गोवा की दूसरी मुख्यमंत्री थीं और भारतीय राजनीति में महिलाओं के नेतृत्व की मिसाल बनीं। उनका जन्म 14 जनवरी 1935 को पोंडा, गोवा में हुआ। वे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भावा साहेब काकोदकर की पुत्री थीं, जिनसे उन्हें देशभक्ति और जनसेवा की प्रेरणा मिली।
    उन्होंने गोवा की राजनीति में मराठी भाषा और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1973 से 1979 तक मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने शिक्षा, पर्यटन और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में दूरगामी निर्णय लिए।
    उनकी नीतियाँ आज भी गोवा के विकास का आधार मानी जाती हैं। 28 अक्टूबर 2016 को उनके निधन के साथ गोवा ने एक ऐसी नेत्री खो दी, जिसने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया।
  3. राजेंद्र यादव (2013) – हिंदी साहित्य के संवेदनशील शिल्पकार
    हिंदी साहित्य के आधुनिक दौर के प्रमुख नाम राजेंद्र यादव का जन्म 28 अगस्त 1929 को आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे “हंस” पत्रिका के संपादक रहे और उन्होंने हिंदी कहानी को नए आयाम दिए।
    उनका उपन्यास “सारा आकाश” ने स्वतंत्रता के बाद के समाज में युवाओं की जद्दोजहद और रिश्तों की जटिलता को सशक्त रूप में प्रस्तुत किया।
    राजेंद्र यादव न केवल कथाकार थे, बल्कि उन्होंने स्त्री विमर्श और दलित साहित्य को भी नई पहचान दिलाई।
    2013 में उनके निधन के बाद हिंदी जगत ने वह स्वर खो दिया जो सामाजिक बदलाव की चेतना को शब्द देता था। उनकी लेखनी आज भी सामाजिक समानता की मशाल जलाए हुए है।
  4. श्रीलाल शुक्ल (2011) – व्यंग्य के महारथी
    श्रीलाल शुक्ल का नाम आते ही “राग दरबारी” की याद आती है, जो हिंदी साहित्य का क्लासिक व्यंग्य उपन्यास है। उनका जन्म 31 दिसंबर 1925 को लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे प्रशासनिक सेवा में रहते हुए भी सामाजिक विसंगतियों पर तीखी कलम चलाते रहे।
    “राग दरबारी” में उन्होंने भारतीय समाज की नौकरशाही, राजनीति और ग्रामीण जीवन के विडंबनापूर्ण यथार्थ को व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया।
    उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 28 अक्टूबर 2011 को उनके निधन के साथ हिंदी व्यंग्य साहित्य का स्वर्ण युग मानो थम गया।
  5. मैक्स मूलर (1900) – भारत संस्कृति के सेतु
    जर्मनी में जन्मे फ्रेडरिक मैक्स मूलर का जन्म 6 दिसंबर 1823 को डेसाऊ, जर्मनी में हुआ था। वे एक महान संस्कृतवेत्ता, प्राच्यविद्या विशेषज्ञ और लेखक थे।
    उन्होंने भारत की वैदिक संस्कृति और उपनिषदों को पश्चिमी जगत से परिचित कराने का कार्य किया। उनके संपादित “Rigveda” के अनुवाद ने यूरोप में भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति सम्मान और जिज्ञासा बढ़ाई।
    ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहते हुए उन्होंने भारतीय दर्शन, धर्म और संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाई।
    28 अक्टूबर 1900 को उनके निधन के साथ भारतविद्या के एक युग का अंत हुआ। उनका जीवन भारत और पश्चिम के बीच सांस्कृतिक सेतु का प्रतीक था।
    28 अक्टूबर केवल एक तिथि नहीं, बल्कि इतिहास के उन पन्नों में दर्ज दिन है, जब समाज ने अपने विचारक, नेता, वैज्ञानिक और लेखक खोए। इन सभी व्यक्तित्वों ने अपने-अपने क्षेत्र में ऐसी पहचान बनाई जो समय के साथ और भी प्रखर होती जा रही है। आज भी इनकी स्मृतियाँ हमें सेवा, सृजन और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
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