Categories: कविता

जीने की राह : जीने की कला

मुश्किलों का आना जीवन
का एक पहलू कहलाता है,
इनसे लड़कर बाहर आ जाना
जीने की कला कहलाता है।

लिप्सायें हमें जीने नहीं देतीं,
पूरी होने को तरसाती हैं,
हम लिप्साओं को मरने नहीं
देते, उम्मीदें सदा बढ़ाती हैं।

संतानों के लिये माँ की ममता
की थाह लगा पाना और,
पिता की क्षमता का अंदाज
लगा पाना अति मुश्किल है।

सबका मानना है कि ये दोनो
काम बहुत ही नामुमकिन हैं,
माँ पृथ्वी समान महान है,
तो पिता प्रजापति ब्रह्मा हैं।

माँ प्रथम गुरू तो पिता सद्गुरू,
दोनो गुरू से ही गुरुतर होते हैं,
गुरू गोविंद सम, तो माता-पिता
भी भगवान जैसे ही माने जाते हैं।

जीवन में हर समस्या केवल हमें
छति पहुँचाने के लिए नहीं आती,
बल्कि कुछ समस्यायें जीवन में,
आकर हर राह को सुलझाती है।

जैसे दुर्भिक्ष आने पर दुनिया में
प्राणियों की मौतें बढ़ जाती हैं,
वैसे ही मनुष्यों में संस्कारों की,
कमी से मानवता मर जाती है।

क्योंकि संस्कारों की वसीयत
और ईमानदारी की विरासत,
से बढ़कर नही कोई सम्पत्ति,
होती है न ही कोई मालियत।

जीवन की संस्कार शाला में,
रचनात्मकता का बल होता है,
मानवता का सद्गुण ‘आदित्य’
मिले तो वह सत्पुरुष होता है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’

Karan Pandey

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