June 16, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

“आदित्य” की दो कविताएं

तुम्हें भुला पाऊँ मुमकिन नहीं

तुम्हारी अर्चना मुश्किल न थी,
मगर पाना तुम्हें मुमकिन नहीं,
मन में समाये हो इस तरह,
भुला पाऊँ तुम्हें मुमकिन नहीं।

रहता हूँ भक्ति भाव में बेहोश,
अब तो हे! प्रभू करिये दया,
रहूँ किंचित मैं होश में बेशक,
बरसे सदा मुझ पर तेरी कृपा।

राज ये मदहोशी या बेहोशी के,
किसी को बतलाना, मुमकिन नहीं,
भक्ति है या शक्ति है, पागलपन है,
क्या नाम इसका बताना मुश्किल है।

तुम अंतर्यामी हो या जादूगर हो,
जो भी हो मेरे तन मन में बसे हो,
नाम तेरा कैसे भी दिन रात जपता रहूँ
तेरे करम से बच पाना मुमकिन नहीं।

नहीं है जब पास तू मेरे,
कहे दिल छोड़ दूँ दुनिया,
पर तू तो बसा है हृदय में, तन मन में,
जीते जी ये कर पाना मुश्किल है।

ज़िन्दगी हँसाये प्रभू तब ये मैं समझूँ,
मेरे सदकर्मों का फल मिल रहा है,
ज़िन्दगी में रोना पड़े तो समझ लूँगा,
सत्कर्मों में कमी का फल मिल रहा है।

मुस्कुराहट इसलिए नहीं कि ख़ुशियाँ
जीवन में सत्कर्म फल से मिल रही हैं,
मुस्कुराहट इसलिए है कि आदित्य
सत्कर्म करते रहने का प्रभु से वादा है।

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हम वही आपकी जनता हैं नेता जी!

हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी,
जिसने तुम्हें विजय दिलवाई थी,
हाथ जोड़ वोट माँगने आये थे नेता जी,
पूरे पाँच वर्ष फिर ग़ायब रहे नेता जी।
हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी…

गड्ढों से बदहाल हमारी सड़कें हैं,
मलबे से बजबजा रहीं नालियाँ हैं,
कूड़ा बिखरा सड़कों पार्कों में नेता जी,
सूखे नल लगे घरों के बाहर नेता जी।
हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी…

नहीं कहीं है पानी की सप्लाई,
सीवर लाइन नहीं है डलवाई,
ग्रीनगैस लाइन पड़ी वर्षों से नेता जी,
न शुरू हुई अबतक सप्लाई नेता जी।
हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी…

आवारा कुत्ते घूमें यहाँ हज़ारों में,
कब हमला कर दें बच्चों बूढ़ों पर,
आतंकी साँड़ घूमते गली में नेता जी,
उठाके पटकें वे सीघों पर नेता जी।
हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी..

सैकड़ों कालोनियाँ यहाँ की अवैध
पुकारी जाती हैं चालीस सालों से,
नियमितीकरण नहीं कर रहे नेता जी,
भ्रष्टाचारी हर कुर्सी पर बैठे नेता जी।
हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी…

प्रत्याशी देखा पहली बार आज,
अब तक किसी और दल में था,
टिकट मिला पैसे के बल पर नेता जी,
आदित्य आया दल बदलकर नेता जी।
हम वही आपकी जनता हैं, नेता जी,
हम वही आपकी….
जिसने तुम्हें विजय दिलवाई थी,
जिसने तुम्हें विजय….

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ ‎