सत क़र्म करो, सत धर्म धरो,
जग जीवन में उपकार करो।
सत क़र्म करो, सत धर्म धरो,
जन जीवन पर उपकार करो,
युग निर्माण, प्रगति पथ पर,
उत्सर्ग रहित, उत्कर्ष करो,
धरती से लेकर, अम्बर तक,
निर्भय बनकर, सब धवल करो,
उत्तुंग शिखर पर चढ़ना है,
कदम उठा कर, निडर चढ़ो।
सत क़र्म करो, सत धर्म धरो,
जन मानस पर उपकार करो।
सत्कर्म किया, सतधर्म जिया,
जग में जनमा, उपकार किया,
माता का अनुपम प्यार मिला,
तो नर सुशील बन पाया मैं,
पुण्य क़र्म पाया जो पिता से,
इस जग में कुछ बन पाया मैं,
कुल की कुलीनता पाकर मैं,
शाश्वत कुलीन बन पाया मैं,
उस कुल की उदारता पाकर,
खुद भी उदार बन पाया मैं।
निज कृत क़र्म पुण्य पा करके,
खुद भाग्यवान बन पाया मैं।
सत क़र्म करो, सत धर्म करो,
जग को पाकर उपकार करो।
माता-पिता का अनुशासन,
जीवन में सदा अलौकिक है,
गुरुओं से ज्ञान प्राप्त करके,
गोविंद को पाना निश्चित है,
जब चले हथोड़ा सोने पर,
आभूषण बन कर शृंगार करे।
यह अनुशासन इस जीवन में,
नर नारायण को भी मिलवा दे,
सत क़र्म करो, सत धर्म धरो,
जग में आकर उपकार करो।
जब निर्माण किया ईश्वर ने,
सब कुछ इंसान को दे डाला,
पर एक वस्तु गिर गई हाथ से,
प्रभू के पैरों ने छिपा डाला,
जब सारे मानव चले गये,
माता लक्ष्मी ने प्रश्न किया,
क्या छिपा लिया है चरणों में,
क्या इंसानों को नहीं दिया,
हँसकर प्रभु माता से बोले,
चरणों के नीचे शान्ति छिपी,
शान्ति प्राप्त करने की ख़ातिर,
पृथ्वी पर इंसान हमेशा तरसेगा,
थककर और हार कर मानव,
फिर मेरी ही शरण में आयेगा,
मेरे श्री चरणों में ही आकर,*
आदित्य शान्ति वह पायेगा।
सतक़र्म करो, सतधर्म धरो,
जग में जी कर उपकार करो।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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