आज एक मित्र ने कहा आदित्य क्यों
न आज सभी बेशक़ीमती दोस्तों की
दोस्ती को इस छोटी सी बात पर भी
आप अपनी एक कविता समर्पित करें!
मित्रता का घमंड एक बेटे को बहुत
यह था कि उसके बहुत सारे मित्र हैं
उसके पिता का केवल एक ही मित्र
था, जिस पर उसे पूरा भरोसा था।
एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि
तुम्हारे बहुत सारे दोस्त है, उनमें से
आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की
क्यों न दोस्ती की परीक्षा ली जाय !
बेटा सहर्ष तैयार और रात दो बजे
दोनों बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के
घर पहुंचे, बार बार दरवाजा खट
खटाया पर दरवाजा नहीं खुला ।
बाद में दोनो ने सुना अंदर से बेटे का
दोस्त अपनी माँ को कह रहा था कि
कह दो मैं घर पर नहीं हूँ, यह सुनकर
दोनो उदास, निराश घर लौट आए।
फिर पिता ने कहा कि बेटे आज तुझे
मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ, दोनों रात
दो बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे
पिता ने अपने मित्र को आवाज दी।
उधर से जवाब आया कि ठहरना
दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ,
दरवाजा खुला, पिता के मित्र के हाथ
में थैली, दूसरे हाथ में तलवार थी ।
पिता ने पूछा मित्र से यह क्या है मित्र,
मित्र बोला अगर मेरे मित्र ने दो बजे
रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है,
तो जरूर वह किसी मुसीबत में होगा।
अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती
है, रुपये पैसे या किसी विवाद की,
पैसे चाहिये तो ये थैली लो, किसी से
झगड़ा हो तो तलवार ले मैं साथ चलूँ।
पिता की आँखे भर आयीं, उन्होंने
अपने मित्र से कहा, मुझे किसी चीज
की जरूरत नहीं, बस मेरे पुत्र जी को
मित्रता की परिभाषा समझानी थी।
तो मित्रों ऐसे मित्र न चुनो जो खुद
गर्ज हों और आपके काम पड़ने पर
बहाने बनाने लगे, अतः मित्र भले ही
एक चुनें, परंतु नेक चुनें, अच्छा चुने।
सच्चे मित्र के कहने से ‘आदित्य’ ने
आज सभी बेशकीमती दोस्तों की
दोस्ती को इस छोटी सी कहानी पर
अपनी यह कविता समर्पित की है।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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