Tuesday, December 23, 2025
Homeउत्तर प्रदेशउपवन जैसे झाड़ झंखाड़ न हों

उपवन जैसे झाड़ झंखाड़ न हों

हाथ की अंगूठी उँगली में हमारे
रिश्तों की तरह सुंदर लगती है,
उँगली से निकालते ही अपना
निशान उँगली पर छोड़ देती है।

रिश्ते भी जब टूटने लगते हैं तो
उँगली के निशान जैसा जीवन
में एक दाग जैसा छोड़ जाते हैं,
अधूरेपन का एहसास कराते हैं।

अहंकार और अकड़ में मज़बूत
व प्रिय रिश्ते खो दिये जाते हैं,
और एक हम हैं कि रिश्तों को
बचाते- बचाते भी खो देते हैं।

कहते हैं कि हाथ की लकीरें अधूरी,
हों तो किस्मत अच्छी नहीं होती है,
जब कि सिर पर हाथ प्रभु का हो
तो लकीरों की ज़रूरत नहीं होती है।

अपना वह नहीं होता जो तस्वीर
बनाते हुये साथ में खड़ा होता है,
अपना तो वह होता है जो हमारी
तकलीफ में साथ खड़ा होता है।

आदित्य जीवन ऐसा निर्मित हो,
उपवन जैसे झाड़ झंखाड़ न हों,
आकाश सदृश ऊँचाई हो उसकी,
हर एक की पहुँच से भी सुदूर हो।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments