🔱 अंतर्मन में विराजमान महादेव: जब चेतना शिव बनकर जागती है 🔱
👉 शिवपुराण शंकर भगवान की शास्त्रोक्त कथा
शिवपुराण की कथा केवल पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि मानव जीवन की आंतरिक यात्रा का दिव्य मानचित्र है। पिछले सप्ताह हमने जाना कि “शिव भीतर हैं, शक्ति भीतर है, बस जागरण की आवश्यकता है।”
अब यह कथा हमें उस अवस्था तक ले जाती है, जहाँ साधक समझता है कि शिव कोई दूरस्थ देवता नहीं, बल्कि हमारी चेतना की सर्वोच्च अवस्था हैं।
यह शास्त्रोक्त कथा बताती है कि जब मन, अहंकार, कामना और भय से मुक्त होकर मौन को धारण करता है—तभी भीतर छिपा शिव जाग्रत होता है। यही वह क्षण है जहाँ जीवन साधारण से दिव्य बन जाता है।
🕉️ शास्त्रोक्त कथा
महादेव का मौन और मानव का जागरण
शिवपुराण में वर्णन आता है कि एक समय देवताओं और ऋषियों ने महादेव से प्रश्न किया—
“हे देवाधिदेव! आप सदा मौन क्यों रहते हैं? सृष्टि को उपदेश क्यों नहीं देते?”
तब भगवान शंकर ने नेत्र खोले और कहा—
“मैं मौन इसलिए हूँ, क्योंकि सत्य शब्दों से नहीं, अनुभव से जाना जाता है।”
यह वाक्य केवल देवताओं के लिए नहीं, बल्कि प्रत्येक मनुष्य के लिए है।
शिव का मौन वास्तव में सबसे बड़ा उपदेश है।
🔱 शिव का स्वरूप — शास्त्रों की दृष्टि में
शिवपुराण, लिंगपुराण और स्कंदपुराण में शिव को—
निराकार भी कहा गया है (लिंग स्वरूप)
साकार भी (त्रिनेत्रधारी, चंद्रशेखर)
यह द्वैत नहीं, बल्कि पूर्णता का प्रतीक है।
शिव वही हैं जो—
सृजन से पहले भी थे
सृजन में भी हैं
और प्रलय के बाद भी रहेंगे
इसीलिए उन्हें महाकाल कहा गया—जो समय से भी परे हैं।
🌙 शिव और शंकर — समानता का रहस्य
शास्त्रों में शिव को दो रूपों में समझाया गया है—
शिव → शुद्ध चेतना, निर्विकार, मौन
शंकर → करुणामय, भक्तवत्सल, लोककल्याणकारी
यह कोई भिन्नता नहीं, बल्कि एक ही तत्व की दो अवस्थाएँ हैं।
जैसे मनुष्य—भीतर से शांत होता है (शिव)
और बाहर से कर्म करता है (शंकर)
यही कारण है कि शिव को आशुतोष कहा गया—
जो भीतर की सच्ची पुकार पर तुरंत प्रकट होते हैं।
🔥 कथा का भावार्थ — अंतःकरण की यात्रा
यह कथा हमें सिखाती है कि—
जब तक मनुष्य बाहरी पूजा, दिखावे और कर्मकांड में उलझा रहता है,
वह शिव को बाहर खोजता है।
लेकिन जिस दिन वह—अपने क्रोध को देख लेता है।
अपने अहंकार को पहचान लेता है।
और अपने भय से संवाद कर लेता है।
उसी दिन शिव उसके भीतर प्रकट हो जाते हैं।
🕯️ शिवलिंग का रहस्य — केवल पत्थर नहीं
शास्त्रों में शिवलिंग को केवल प्रतीक नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना का केंद्र माना गया है।
गोल आधार → प्रकृति (शक्ति)
ऊर्ध्व लिंग → पुरुष (चेतना)
जब दोनों का मिलन होता है,
तभी सृष्टि चलती है।
यही कारण है कि शिवलिंग की पूजा वास्तव में—
👉 अपने भीतर के संतुलन की आराधना है।
🌸 भक्ति और वैराग्य का अद्भुत संगम
महादेव न तो केवल योगी हैं, न केवल गृहस्थ।
वे दोनों हैं—और दोनों से परे भी।
वे कैलाश में ध्यानस्थ हैं
और श्मशान में भी रमते हैं
यह हमें सिखाता है कि—
जीवन से भागना नहीं, जीवन में रहते हुए उससे मुक्त होना ही शिवत्व है।
🕉️ आधुनिक जीवन में कथा का संदेश
आज का मानव—तनाव से घिरा है।
भय और प्रतिस्पर्धा में उलझा है।
और शांति खोज रहा है।
शिवपुराण की यह कथा कहती है—
“शांति कहीं बाहर नहीं, वह तुम्हारे भीतर सोई है।”
जब मन स्थिर होता है,
जब सांस सजग होती है,
जब इच्छाएँ संयम में आती हैं—
तभी भीतर का शिव जागता है।
🔔 शिवत्व की प्राप्ति
शिव कोई दूरस्थ देवता नहीं
वे हमारी चेतना की उच्चतम अवस्था हैं
और शक्ति हमारी इच्छाशक्ति है
जब चेतना और इच्छा का संतुलन होता है,
तभी मानव महादेव के मार्ग पर चलता है।
“शिव को जानना, स्वयं को जानना है।”
