
खरीद घाट पर जलयान की वापसी बना कौतूहल का केंद्र
बलिया (राष्ट्र की परम्परा)करीब डेढ़ साल बाद गंगा की लहरों पर एक बार फिर वही दृश्य जिंदा हो उठा, जिसने लोगों की आंखों में रोमांच भर दिया। अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर बंगाल से चलकर जल मार्ग से पहुंचे विशेष जलयान की वापसी यात्रा मंगलवार की शाम खरीद घाट से गुज़री — और ये क्षण आसपास के गांवों के लिए कौतूहल, आकर्षण और भावनाओं से भरा हुआ बन गया।
शाम करीब 5 बजे का वक्त था। सूरज ढलने को था और गंगा की लहरों पर चमकती रोशनी के बीच एक विशाल जलयान धीमे-धीमे सरकता हुआ खरीद घाट के सामने से गुजर रहा था। जलयान पर करीब आधा दर्जन कर्मचारी सवार थे। जैसे ही घाट किनारे लोगों को इसकी भनक लगी, आसपास के गांवों से ग्रामीण दौड़े चले आए। कुछ नंगे पांव, कुछ बच्चों को गोद में उठाए — मानो कोई पुरानी स्मृति फिर से आंखों के सामने उतर आई हो।
लोगों की आंखों में एक अनकहा रोमांच था, एक फिल्मी दृश्य की सी झलक। भीड़ ने हाथ हिलाकर जलयान पर सवार कर्मचारियों का स्वागत किया। उत्साही युवाओं ने तो इशारों से उसे किनारे लाने की गुज़ारिश भी की। कुछ पल को ऐसा लगा जैसे कर्मचारियों ने लोगों की भावनाओं को समझ लिया हो — क्योंकि जलयान ने अपना रुख थोड़ा मोड़ा… लेकिन तभी, एक पल में दिशा बदलते हुए वह आगे बढ़ गया।
कुछ बच्चों की मासूम आवाजें गूंज उठीं — “अरे! रुक तो जाता!”
किसी बुजुर्ग ने गहरी सांस लेते हुए कहा — “शायद अगली बार पास से देखने को मिल जाए…”
इस पूरे दृश्य ने गांवों में नई चर्चा को जन्म दे दिया है। खेतों में, चौपालों पर, चाय की दुकानों पर — एक ही बात हो रही है:
“जलयान आया… और फिर चला भी गया… पर दिल में एक लहर सी छोड़ गया।”
यह क्षण सिर्फ एक जलयान की वापसी नहीं था — यह ग्रामीण जनजीवन में भावनाओं, उम्मीदों और स्मृतियों की एक नई लहर का आगमन था।
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