सत्य की राह सुनसान - राष्ट्र की परम्परा
August 18, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

सत्य की राह सुनसान

भाग्य जब चमकता है,
तभी तो काम करता है,
कर्म पर ही सब निर्भर है,
भाग्य भी कर्म पर निर्भर है।

वक्त कब बदल जाता है,
कोई नहीं जान सकता है,

भाग्य कब साथ छोड़ दे,
कोई नहीं समझ पाता है।

समय और भाग्य पर कभी
अहंकार नहीं करना चाहिए,
अपने सत्कर्म और श्रम पर,
ही विश्वास रखना चाहिये।

अपनी ज़रूरत के लिये,
संघर्ष करना पड़ता है,
वर्ना जो छिन जाता है,
उसके लिये क्या रोना है।

सत्य की राह सुनसान होती है,
जिस में भीड़ भाड़ नहीं होती है,
इसी पर चलना सार्थक होता है,
झूठ फ़रेब तो हर राह मिलता है।

सत्य है जो सत्य को अपनाता है,
आदित्य वह सदैव निडर रहता है,
झूठ के साथ रहने वाला व्यक्ति,
आजीवन सदा भयभीत ही रहता है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ