June 14, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

सबका मालिक एक है

एक आदमी गाय घर ले जा रहा था,
वह आदमी लाख प्रयास कर रहा था,
पर गाय टस से मस नहीं हो रही थी,
उस आदमी को बहुत देर हो गयी थी।

संत साँई यह सारा माजरा देख रहे थे,
वे संत हैं, उनकी दृष्टि अलग होती है,
तभी तो दुनिया उनकी बातें सुन कर,
अपना सिर ही खुजलाती रह जाती है।

संत अचानक ठहाका लगाकर हँसे,
वह आदमी पहले ही खीज रहा था,
संत की हँसी उसे तीर की तरह लगी,
आपको बड़ी हंसी आ रही, वह बोला।

संत अपना झोला हाथ में लेकर बोले,
मैं तुम पर नहीं, खुद पर हँस रहा हूँ,
मैं सोच रहा हूँ कि मैं इस झोले का
मालिक हूँ, या झोला मेरा मालिक है।

इस पर वह अति भोला आदमी बोला,
सोच की क्या बात है आपका झोला,
जैसे गाय मेरी, मैं इसका मालिक,
वैसे ही आपका झोला आप मालिक।

संत ने कहा, नहीं भाई, ये झोला
मेरा मालिक हैं, मैं इसका दास हूँ,
इस झोले को मेरी जरूरत नहीं हैं,
बल्कि मुझे ही इसकी जरूरत हैं।

तुम गाय की रस्सी छोड़ दो, तब जो
जिसके पीछे जायगा वो उसका दास,
इतना कहकर संत ने अपना झोला
नीचे रख दिया व हँसकर चल दिया।

हम अपने को बहुत से धन, दौलत
और सेवकों का मालिक समझते हैं,
परंतु हम मालिक नहीं, मालिक वो है,
क्योंकि उनकी आवश्यकता हमें है।

जो रस्सियाँ पकड़े हुये है, वह दास है,
जिसने सारी रस्सियाँ छोड़ दिया है,
जिसे किसी से कुछ अपेक्षा नही है,
वास्तव में वही असली मालिक है।

सन्त साँई जी की शिक्षा यही है,
कि अपना जीवन उसके भरोसे है,
जो हम सभी का मालिक है और
आदित्य सबका मालिक एक है।

डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’ ‎