Monday, October 27, 2025
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विरह की विषाद-धान: 25 अक्टूबर को खोए हुए उन सात महान व्यक्तियों की अमिट छाप”

आज हम उन सात महान विभूतियों को याद कर रहे हैं, जिनका निधन 22 अक्टूबर की तारीख से जुड़ा नहीं है बल्कि 25 अक्टूबर को हुआ था — और जिन्होंने विभिन्न-विविध क्षेत्रों में अपना अमूल्य योगदान दिया। नीचे प्रत्येक का जन्म-स्थान, शिक्षा, प्रमुख उपलब्धियाँ तथा योगदान “भिन्न शब्दों” में प्रस्तुत कर रहा हूँ।


१. साहिर लुधियानवी (8 मार्च 1921-25 अक्टूबर 1980)

साहिर लुधियानवी का जन्म पंजाब के लुधियाना-शहर में हुआ था। उनके पारिवारिक वातावरण में जमींदारी व्यवस्था थी, परंतु उनकी मां ने अपने साहस से संघर्ष का रास्ता चुना। शिक्षा-प्रारंभ लुधियाना में हुई, जहाँ उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ कवि-मशायरे और उर्दू-हिंदी गीतकार के रूप में अपनी प्रतिभा निखारी।

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उनकी रचनाएँ सिर्फ प्रेम-विषयक नहीं थीं, बल्कि सामाजिक अन्याय, जात-पात, गरीबी और मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील थीं। हिंदी-उर्दू सिनेमा में उन्होंने अमिट छाप छोड़ी — यदि ‘प्यासा’, ‘कभी कभी’ जैसे गीत आज भी गूंजते हैं, तो यह उनकी गहरी सोच का प्रमाण है। उन्होंने अपने विलेख-शब्दों से “सामान्य आदमी” की पीड़ा, अरमान, प्रेम-उलझन को बड़ी सहजता से अभिव्यक्त किया।
उनका निधन 25 अक्टूबर 1980 को हुआ। उनकी विरासत आज भी प्रेरणा-का स्रोत है।
२. निर्मल वर्मा (3 अप्रैल 1929-25 अक्टूबर 2005)
निर्मल वर्मा का जन्म हिमाचल-प्रदेश के शिमला में हुआ था, जहाँ उनके पिता ब्रिटिश भारत की सिविल सर्विस में थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास विषय में एम.ए. किया। उसके बाद उन्होंने यूरोप-मध्‍यदेश की संस्कृति-भाषा-अनुवाद का अनुभव हासिल किया, विशेष रूप से चेक भाषा-स साहित्य का।
निर्मल वर्मा की लेखनी में भारतीय-पश्चिमी दृष्टिकोणों का समन्वय दिखता है; उनकी कहानियाँ, उपन्यास और निबंध आज भी हिन्दी साहित्य में नए-सिरे से मूल्य रखती हैं। उनकी शैली ने ‘नई कहानी’ आन्दोलन को आकार दिया।
उनका देहांत 25 अक्टूबर 2005 को हुआ। उन्होंने साहित्य-प्रेमियों के दिलों में गहरी जगह बनाई।

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३. दिलीपभाई रमणभाई पारिख (16 फरवरी 1937-25 अक्टूबर 2019)

दिलीपभाई पारिख का जन्म 16 फरवरी 1937 को हुआ था। उन्होंने मुंबई के एल्फिन्स्टन कॉलेज से अर्थशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में उन्होंने उद्योग-जगत में कदम रखा और गुजरात के उद्योग संघों में सक्रिय रहे।
राजनीति में उनका पदार्पण 1990 में हुआ और 28 अक्टूबर 1997 से 4 मार्च 1998 तक वे गुजरात के 13वें मुख्यमंत्री रहे। उनकी सरकार थोड़ी अवधि की थी, पर उन्होंने उद्योग-विकास, वाणिज्यिक संवेदनशीलता और राजनीतिक संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका निधन 25 अक्टूबर 2019 को हुआ। गुजरात-राजनीति में उनका नाम याद रहने वाला रहा।

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४. पाण्डुरंग शास्त्री अठावले (19 अक्टूबर 1920-25 अक्टूबर 2003)
पाण्डुरंग शास्त्री अठावले का जन्म महाराष्ट्र के रोहा-गाँव में 19 अक्टूबर 1920 को हुआ था। उन्होंने अपने पिता की प्रेरणा से युवा-काल में वेद, उपनिषद और भगवद् गीता का गहन अध्ययन किया और 12 वर्ष की आयु में ही ‘टपोंवन-शाला’ जैसी शिक्षा प्रणाली में लगे।
1954 में उन्होंने ‘स्वाध्याय परिवार’ का आरंभ किया — यह स्व-अध्ययन, आत्म-सम्मान और सामाजिक समरसता का आंदोलन बना। उन्होंने भारत के ग्रामीण-क्षेत्रों में लाखों लोगों को आत्म-सशक्त बनाने की दिशा में काम किया।
उनका दिव्य निधन 25 अक्टूबर 2003 को हुआ। उनका जीवन सामाजिक न्याय-आधारित प्रेरणा-कथा बन गया।
५.विलियमसन ए. संगमा (18 अक्टूबर 1919-25 अक्टूबर 1990)
विलियमसन ए. संगमा भारतीय उत्तर-पूर्व क्षेत्र के मेघालय राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। उनका जन्म 18 अक्टूबर 1919 को मेघालय के बाघमारा-भूभाग में हुआ था। उन्होंने धाक जमा ली कि हिल-स्टेट आंदोलन को आगे बढ़ाकर गारो-भूमि के हितों की रक्षा करें।
उनकी राजनीति-कार्यशैली में आदिवासी पहचान-संरक्षण, भौगोलिक तथा सामाजिक समावेशन की दिशा थी। उन्होंने मेघालय के गठन-प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका निधन 25 अक्टूबर 1990 को हुआ। पूर्वोत्तर के नेतृत्व-युग में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
६. जसपाल भट्टी (3 मार्च 1955-25 अक्टूबर 2012)
जसपाल भट्टी का जन्म 3 मार्च 1955 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (PEC) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
हालाँकि उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, पर उनका असली पहचान हास्य-विषयक व्यंग्य में गई — टीवी श्रृंखला Flop Show, Full Tension आज भी याद किये जाते हैं। वे आम आदमी की दिक्कतों-पत्रों-निराशाओं को हल्के-फुल्के अंदाज में उजागर करते थे, लेकिन उनका असर गहरी-था।
25 अक्टूबर 2012 को एक दुखद सड़क दुर्घटना में उनका निधन हुआ। भारतीय हास्य-समीक्षा में उनका नाम स्थायी है।
७. शिवेन्दर सिंह सिन्धू (?-25 अक्टूबर 2018)
शिवेन्दर सिंह सिन्धू का नाम भारत के संवैधानिक-सेवा-क्षेत्र में आता है। उन्होंने मणिपुर, गोवा एवं मेघालय जैसे राज्यों में राज्यपाल की जिम्मेदारी का निर्वाह किया। वे जन-सेवा के उस उसर पर थे जहाँ प्रशासन-निर्वाह का मिश्रण राजनीतिक-ज्ञान से होता है।
उनका निधन 25 अक्टूबर 2018 को हुआ। उनकी सेवा-यात्रा आज भी प्रेरणा देती है।

25 अक्टूबर की यह तारीख कई क्षेत्रों में असाधारण व्यक्तित्वों के लिए विदा-दिन रही है — कवि-गीतकार से साहित्यकार, राजनीतिक नेतृत्व से सामाजिक-दर्शक, हास्य-वर्तुना से राज्यपाल-सेवक तक। ये सात लोग हमारे समाज-लोक में अलग-अलग क्षेत्रों में “छाप छोड़ने” वाले थे — और उनकी याद हमें प्रेरणा देती है कि हमें अपने कार्य-क्षेत्र में भी कुछ “अमिट” छोड़ना है।

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