December 18, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

सावन की महिमा न्यारी है

नभ अच्छादित मेघों से
यह विनय मैं करता हूँ,
भाग भाग कर थकते हो,
ठहरो, बरसो, हल्के हो।

माना कावंड ले चले सभी,
शिव – अर्पण हेतु सुजल,
हों प्रसन्न शिव भोलेबाबा,
धरती अम्बर काले बादल।

उमड़ घुमड़ के आओ बरसो,
गर्जन तर्जन ज़्यादा न करें,
धरती माँ को भी संतुष्ट करें,
जन मानस के जलद बरसें।

सावन की महिमा न्यारी है,
वर्षा ऋतु का पवित्र महीना,
हरियाली चहुँ ओर है दिखती,
जब दहलाते बादल हैं सीना।

झूले पड़ जाते बागों पेड़ों में,
सखियाँ आनंद हिलोरे लेती हैं,
श्याम घटा घनघोर घिर जाती,
शीतल पवन मस्त हो मदमाती।

आदित्य उपवन में मोर नाचते हैं,
कोयल कुहू कुहू का राग सुनाती,
भौंरे गुन गुन का मद मस्त हो रहे,
प्रकृति मनोहरता है लेकर आती।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ