भगवान शिव: अद्भुत त्याग, अपार करुणा और अनंत शक्ति की धुरी शिव पुराण के अनुसार शिव–तत्त्व का रहस्य
हिन्दू धर्म में भगवान शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि की वह ऊर्जा हैं जो विनाश में सृजन और मृत्यु में अमरत्व का संदेश देती है। शिव पुराण में वर्णित महाशिव की कथाएँ मानव जीवन के हर आयाम को स्पर्श करती हैं—वैराग्य, करुणा, न्याय, प्रेम और त्याग। “एपिसोड–2” के इस लेख में हम शिव पुराण के उन गूढ़ अध्यायों का विस्तार से उल्लेख कर रहे हैं, जो भगवान शिव के तत्त्व को और भी स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं।
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शिव का त्याग—जहाँ ईश्वर स्वयं सरलता का रूप बन जाता है
शिव पुराण बताता है कि देवाधिदेव महेश्वर ने स्वयं को भौतिक सुखों से अलग कर हिमालय की बर्फीली गुफाओं को अपना निवास बनाया।
ब्रह्मा-विष्णु की तरह न तो उनमें राजसी वैभव था और न किसी प्रकार का आडंबर। वे बस बाघम्बर धारण किए, हाथ में त्रिशूल, जटाओं में गंगा और नीली कंठ में हलाहल का विष लिए सबके कल्याण में लीन थे।
कथा मिलती है कि जब समुद्र मंथन में विश्व को संकट में डाल देने वाला कालकूट विष निकला, तो कोई भी देवता उसे स्पर्श करने का साहस नहीं कर पाया। तभी भगवान शिव ने बिना किसी विलंब के विष को अपने कंठ में रोक लिया।
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यह केवल बल का नहीं, बल्कि परम त्याग और करुणा का सर्वोच्च उदाहरण है। तभी तो वे “नीलकंठ” कहलाए—दुनिया को बचाने का दर्द स्वयं में समेट लेने वाले देव।
सती का प्रेम और शिव का विरह—एक अमर कथा
शिव पुराण की एक अत्यंत मार्मिक कथा है भगवान शिव और माता सती का दिव्य मिलन। सती शिव के प्रति अनन्य निष्ठा रखती थीं, परंतु पिता दक्ष की अवमानना ने प्रेम को अग्नि बना दिया।
जब दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और सती का अपमान किया, तो उन्होंने अपने प्राण अग्नि को समर्पित कर दिए। इस घटना ने शिव के हृदय को शोक, क्रोध और विराग के महासागर में डुबो दिया।
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सती की देह उठाकर शिव का तांडव आज भी एक ऐसी घटना माना जाता है जिसने सृष्टि की गति को हिला दिया था। देवताओं को भय हुआ कि यदि शिव का तांडव जारी रहा तो ब्रह्मांड समाप्त हो जाएगा।
तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से सती के अंगों को पृथ्वी पर गिराकर तांडव को शांत किया। यही अंग शक्तिपीठों के रूप में आज भी श्रद्धा के केंद्र हैं।
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शिव–तत्त्व: विनाश नहीं, नवसृजन का मार्ग शिव पुराण स्पष्ट करता है कि भगवान शिव का “विनाश” हमेशा “कल्याणकारी” होता है।
वे अहंकार का नाश करते हैं, न कि आत्मा का।
वे अधर्म का अंत करते हैं, न कि संसार का।
उनका तृतीय नेत्र केवल तब खुलता है जब सृष्टि में संतुलन बिगड़ जाता है। इससे स्पष्ट है कि शिव हर युग में “संतुलनकारी शक्ति” हैं—जो मानव को भीतर से बदलने, परिष्कृत करने और सत्य की राह पर अग्रसर करने का मार्ग दिखाते हैं।
नटराज—सृष्टि, स्थित और संहार का अद्भुत नृत्य
नटराज का रूप शिव पुराण में गहन अर्थ छुपाता है।
उनका नृत्य केवल कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की अनवरत गतिशीलता का संकेत है—
जहाँ हर समाप्ति में एक नई शुरुआत छिपी होती है।
धूलकणों से लेकर आकाशगंगाओं तक, सब उनकी ताल पर ही तो नृत्यरत हैं। यही नृत्य सृष्टि को जीवंत और संतुलित बनाए रखता है।
क्यों शिव विश्व–गुरु हैं?
क्योंकि वे तप के माध्यम से शक्ति का ज्ञान देते हैं।
त्याग के माध्यम से प्रेम का अर्थ समझाते हैं।
करुणा के माध्यम से धर्म का मार्ग दिखाते हैं।
भय रहित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
और सबसे महत्वपूर्ण—अपने भक्तों को बिना किसी भेदभाव के स्वीकार करते हैं।
यही कारण है कि शिव आज भी “जन-जन के देव” हैं।
न कोई बड़ा-छोटा, न ऊँच-नीच, न जाति-धर्म—हर कोई महादेव का है, और महादेव सबके।
एपिसोड-3 में अगले शुक्रवार को… हम पढ़ेंगे—पार्वती का तप, शिव का पुनर्मिलन और महासृष्टि के रहस्य।
