December 4, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

पहली बारिस की स्निग्ध फुहार

आख़िर देर से ही सही आयी तो,
झमाझम बादल आज यूँ बरसे,
चिपचिपाती गर्मी की यह उमस,
बादल बरसे और जमकर बरसे।

कड़कती बिजली बादलों के मध्य,
सारे शहर गाँव वन तर-बतर भीगे,
मानसून आ गया भले ही देर सबेर,
प्यासी धरती के कण कण भीगे।

जल स्तर ऊपर हो रहा भू गर्भ में,
पशु पक्षी समस्त मानव उमंग में,
जलवायु, हर दिशा हरी हो उठी,
धरती माँ फिर से संतृप्त हो गई।

मिला है प्रकृति का पावन उपहार,
तन मन भीग रहा रिमझिम बहार,
आषाढ़ सावन हैं कितने मनभावन,
नीर क्षीर वृष्टि देख हर्षित हैं नयन।

आदित्य हृदय तरंगित पावन पावस,
दादुर ध्वनि सुनि मेढक की टर्र टर्र,
तन मन प्रफुल्लित राग मेघ मल्हार,
पहली बारिस की यह स्निग्ध फुहार।

  • कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’