नवनीत मिश्र

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पावन गाथा में अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन जिस ज्वाला की पहली चिंगारी बनी, वह थे मंगल पाण्डेय। उनका जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता दिवाकर पाण्डेय और माता अभय रानी ने उन्हें सदाचार और धार्मिक मूल्यों की शिक्षा दी थी। युवा मंगल पाण्डेय 10 मई 1849 को, मात्र 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए। उन्हें बैरकपुर की छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में सिपाही बनाया गया। प्रारंभ में वे एक अनुशासित सैनिक के रूप में पहचाने गए, परंतु ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों और धार्मिक भावनाओं के प्रति असंवेदनशीलता ने उनके भीतर विद्रोह की भावना जाग्रत की। सेना में एक नई एनफील्ड राइफल का उपयोग शुरू किया गया, जिसकी कारतूसों पर चर्बी लगी होने की बात सामने आई। यह चर्बी गाय और सुअर की बताई गई, जो हिन्दू और मुस्लिम दोनों सैनिकों की धार्मिक आस्था के प्रतिकूल थी। जब सैनिकों से इन कारतूसों को दांतों से काटकर खोलने को कहा गया, तो यह अपमान और आस्था पर सीधा आघात था। इसी पृष्ठभूमि में 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डेय ने ब्रिटिश अधिकारी मेजर ह्यूसन पर गोली चला दी। यह साहसिक कृत्य तत्कालीन औपनिवेशिक सत्ता के लिए एक चुनौती था। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई। मंगल पाण्डेय का यह बलिदान अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पहला सशस्त्र विरोध था, जिसने 1857 के व्यापक विद्रोह को जन्म दिया। यद्यपि इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को तत्काल दबा दिया गया, लेकिन यह ब्रिटिश हुकूमत की नींव को हिला गया और स्वतंत्रता की चेतना को पूरे देश में फैला दिया। भारत सरकार ने 1984 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। 2005 में उनकी प्रेरणादायक गाथा पर आधारित फिल्म प्रदर्शित हुई। यह फिल्म आम जनमानस तक उनकी वीरता की कहानी पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम बनी। अमर शहीद मंगल पाण्डेय एक सैनिक भर नहीं थे, वे भारत की स्वाधीनता की पहली लौ थे। उनका साहस, बलिदान और विद्रोह आज भी प्रत्येक भारतीय को स्वतंत्रता के मूल्य का स्मरण कराता है। वे न केवल इतिहास के पन्नों में अमर हैं, बल्कि प्रत्येक स्वतंत्र भारतवासी के हृदय में सम्मानपूर्वक जीवित हैं।