30 नवंबर – स्मृतियों की वह तिथि, जब इतिहास ने कुछ अनमोल दीप बुझते देखे
30 नवंबर सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि वह दिन है जब भारत ने राजनीति, साहित्य, विज्ञान, शिक्षा और समाज-सुधार के क्षेत्र से जुड़े कई महान व्यक्तित्वों को खो दिया। इन विभूतियों का जीवन संघर्ष, विचार और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
🔹 1. वी. के. नायर (निधन – 2015)
वी. के. नायर भारत के एक सम्मानित सैन्य अधिकारी रहे, जिन्होंने भारतीय थलसेना में वर्षों तक सेवा दी। उनका जन्म केरल राज्य के एक साधारण परिवार में हुआ। सेना में रहते हुए उन्होंने अनुशासन, साहस और राष्ट्रभक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया। देश की सुरक्षा में उनका योगदान अमूल्य रहा। सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा विषयों पर मार्गदर्शन देते रहे।
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🔹 2. जारबोम गारलिन (निधन – 2014)
जारबोम गारलिन अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री रहे। उनका जन्म अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में हुआ था। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि थी और उन्होंने राज्य के गांवों तक विकास की रौशनी पहुंचाने का प्रयास किया। उनके नेतृत्व में सड़क, विद्यालय और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ। जनजातीय समुदाय के उत्थान में उनका अहम योगदान रहा।
🔹 3. राजीव दीक्षित (निधन – 2010)
राजीव दीक्षित का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था। वे एक वैज्ञानिक सोच रखने वाले सामाजिक विचारक और स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख प्रवक्ता थे। उन्होंने विदेशी कंपनियों और रासायनिक उत्पादों के बहिष्कार का अभियान चलाया। उनका मानना था कि प्राकृतिक जीवनशैली और देसी उत्पादों से ही भारत सशक्त बन सकता है। उनके भाषणों ने युवाओं में आत्मनिर्भरता की चेतना जगाई।
🔹 4. इन्द्र कुमार गुजराल (निधन – 2012)
इन्द्र कुमार गुजराल भारत के 12वें प्रधानमंत्री रहे। उनका जन्म पाकिस्तान के झेलम (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। पत्रकारिता से शुरू हुआ उनका सफर राजनीति तक पहुंचा। “गुजराल डॉक्ट्रिन” उनकी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की पहचान बना, जिससे पड़ोसी देशों से मैत्रीपूर्ण रिश्तों को बल मिला।
🔹 5. गुरुजाडा अप्पाराव (निधन – 1915)
गुरुजाडा अप्पाराव प्रसिद्ध तेलुगु साहित्यकार और समाज-सुधारक थे। आंध्र प्रदेश में जन्मे अप्पाराव ने तेलुगु भाषा को आधुनिक स्वरूप दिया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए नाटक और कविताएं लिखीं। उनका नाटक ‘कन्याशुल्कम्’ आज भी तेलुगु साहित्य का मील का पत्थर माना जाता है। वे महिलाओं की शिक्षा के समर्थक भी थे।
🔹 6. रमेश चन्द्र दत्त (निधन – 1909)
रमेश चन्द्र दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था। वे एक महान लेखक, इतिहासकार और शिक्षाविद् थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन की “धन के बहिर्गमन की नीति” (Drain of Wealth Theory) को उजागर किया। अंग्रेज़ी और बंगला भाषा में लिखी उनकी रचनाएं आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास को समझने में सहायक हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय चेतना के मजबूत स्तंभ थे।
