August 7, 2025

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नाराज़ प्रकृति की नाराज़गी से भयंकर सैलाब- प्रकृति की मानवीय कृतिय क़े लापरवाही की चेतावनी तो नहीं?

प्रकृति ने मानव को जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी संसाधन दिए-मानव ने अपने स्वार्थवश इन संसाधनों का दोहन किया?

धराली व किन्नौर में आपदा से तबाही – क्या यह आपदाएं प्राकृतिक चक्र है ? या इसके पीछे कहीं न कहीं मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका भी है?- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

गोंदिया महाराष्ट्र – प्रकृति और मानव का संबंध सदियों पुराना है। जहां एक ओर प्रकृति ने मानव को जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी संसाधन-जल, वायु,मृदा,खनिज, वन, जीव-जंतु आदि- प्रदान किए हैं, मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया,महाराष्ट्र यह मानता हूं कि मानव ने अपने स्वार्थवश इन संसाधनों का दोहन किया। आज जब पृथ्वी जलवायु परिवर्तन,ग्लेशियरों के पिघलने, असमय बाढ़,सूखा,तूफान, भूकंप, भूस्खलन जैसी तमाम प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रही है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह केवल प्राकृतिक चक्र है या इसके पीछे कहीं न कहीं मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका भी है? हम इसी प्रश्न की पड़ताल करेंगे और तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करेंगे कि धराली व किन्नौर में आपदा से तबाही- क्या यह आपदाएं प्राकृतिक चक्र है या इसके पीछे कहीं न कहीं मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता?
साथियों बात अगर हम,भारत के हिमालयी क्षेत्र,विशेषकर उत्तराखंड का धराली गांव और हिमाचल प्रदेश का किन्नौर, हाल ही में भीषण प्राकृतिक तबाही के साक्षी बने हैं, की करें तो बादल फटने, भूस्खलन, अचानक आई बाढ़, और गांवों का अस्तित्व मिटा देने वाली घटनाओं ने न केवल जन-धन का भारीनुकसान किया, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया-क्या ये आपदाएं केवल प्रकृति की आपूर्ति थीं या मानवीय लालच, अंधाधुंध निर्माण, खनन और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों का नतीजा?भारत के हिमालयी क्षेत्र, विशेषकर उत्तराखंड का धराली गांव और हिमाचल प्रदेश का किन्नौर, हाल ही में भीषण प्राकृतिक तबाही के साक्षी बने हैं। बादल फटने, भूस्खलन, अचानक आई बाढ़, और गांवों का अस्तित्व मिटा देने वाली घटनाओं ने न केवल जन-धन का भारी नुकसान किया, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया-क्या ये आपदाएं केवल प्रकृति की आपूर्ति थीं या मानवीय लालच, अंधाधुंध निर्माण, खनन और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों का नतीजा?इस लेख में हम धराली और किन्नौर की घटनाओं का विस्तारपूर्वक विश्लेषण करेंगे, और यह समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, असंवेदनशील विकास, और पर्यावरणीय चेतावनियों की अनदेखी ने इन शांत पर्वतीय क्षेत्रों को विनाश के मुहाने पर ला खड़ा किया। (1) बिना पर्यावरणीय मूल्यांकन के सड़कों और सुरंगों का निर्माण हो रहा है। (2) पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाकर हाईवे बनाए जा रहे हैं। (3) जलविद्युत परियोजनाएं नदियों के प्रवाह को रोककर क्षेत्रीय इकोसिस्टम को ध्वस्त कर रही हैं। (4) पेड़ कट रहे हैं, और कंक्रीट के जंगल उगाए जा रहे हैं।इनका परिणाम:- (1) ज़मीन की पकड़ कमजोर हो जाती है। (2) पानी का स्तर गिरता है।(3) पारिस्थितिक असंतुलन बढ़ता है। (4) बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं आम हो जाती हैं। चार धाम सड़क परियोजना:- उत्तराखंड में चार धाम सड़क परियोजना के नाम पर हज़ारों पेड़ों की कटाई की गई। पर्यावरणविदों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि यह इलाका भूस्खलन-प्रवण है। फिर भी सड़कों को चौड़ा करने के लिए बड़े-बड़े हिस्सों को नष्ट कर दिया गया।पर्यटन का असंवेदनशील विस्तार:-किन्नौर और धराली जैसे क्षेत्र अब “टूरिज्म हॉटस्पॉट” बन गए हैं। इसके चलते: (1) अवैज्ञानिक होटल निर्माण हुआ। (2) जैविक अपशिष्ट नदियों में फेंका गया। (3) वॉटर रीसोर्सेज़ पर अतिरिक्त दबाव पड़ा।(4) स्थायी जनसंख्या से अधिक वाहनों का प्रवेश हुआ।:- अवैध खनन और निर्माण कार्य(1) किन्नौर के पहाड़ों में अवैध खनन बहुत वर्षों से चल रहा है। (2) स्थानीय लोगों की शिकायतों के बावजूद प्रशासनिक चुप्पी रही। (3) यह गतिविधियाँ भूगर्भीय अस्थिरता को और बढ़ावा देती हैं, जिसे रेखांकित करना होगा।
साथियों बातें कर हम धराली उत्तराखंड के बाद किन्नौर हिमाचल प्रदेश में 6 अगस्त 2025 को बादल फटने की करें तोधराली के बाद हिमाचल प्रदेश में भी हालात खराब दिखाई दे रहे हैं,उत्तरकाशी में नदी के बढ़े जलस्तर व आस-पास के क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण कर अधिकारियों को 24 घंटे अलर्ट मोड पर रहने के निर्देश दिए। धराली उत्तरकाशी में सभी सरकारी एजेंसियां, विभाग और सेना आपसी समन्वय से राहत एवं बचाव कार्य में लगे हुए हैं। बीती रात 130 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू किया गया है। बंद रास्तों को खोला जा रहा है और प्रभावितों को हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। उत्तराखंड के सीएम का कहना है,पूरा धराली आपदा की चपेट में आ गया है, और कल की घटना के बाद वहां कई चरणों में मलबा आया है. मैंने आज वहां जाकर लोगों से मुलाकात की, उनसे बात की और घटना की जानकारी ली, आपदा से सब कुछ तबाह हो गया, इसके साथ ही शाम तक सेना के जवानों ने करीब 190 लोगों को बचा लिया है,उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है, अभी घायलों को भी वहां से रेस्क्यू कर उत्तरकाशी लाया जा रहा है,कई जगहों पर भूस्खलन से पूरा संपर्क मार्ग पूरी तरह प्रभावित हुआ है।सरकार सभी व्यवस्थाएं करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, प्रधानमंत्री ने भी हमें हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया है,और उनके मार्गदर्शन में हम आपदा पीड़ितों की समुचित मदद करेंगे,यह स्पष्ट है कि पहाड़ी क्षेत्रों में हो रहे कटाव, भूस्खलन और सडक़ों के धंसने जैसी आपदाओं के लिए प्रकृति नहीं, बल्कि मानव की अविवेकपूर्ण योजनाएं, लालची विकास मॉडल और पर्यावरणीय उपेक्षा ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। जब तक विकास की दिशा में संतुलन और संवेदनशीलता नहीं लाई जाती, तब तक ऐसी त्रासदियां दोहराती रहेंगी।
साथियों बात अगर हम आज पृथ्वी पर पर्यावरण के संतुलनया पर्यावरण को अपने हिसाब से इस तरह महसूस करने की करें तो (1) हिमालय से ग्लेशियरों के पिघलनेकी तेज गतिके चलते समुद्रक़ाजलस्तर 1.5 मिली मीटर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है,जिस कारण वायु प्रदूषण ग्रीन हाइड्रो गैसों के कारण यह सब हो रहा है, दूसरा धरती अपनी धुरी से एक डिग्री तक खिसक गई है,वन तेजी से कम हो रहे हैं व पर्यावरण कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ रहा है (2) पांच जगह पर अधिक खनन हो रहा है,नदी के पास,पहाड़ की कटाई,खनिज धातु खनन, समुद्री इलाकोंमें खनन, पानी के लिए धरती क्षेत्र में बोरिंग रेत गिट्टी हीरा कोयला तेल पेट्रोल के लिए कई हजारों फीट खुदाई। (3) जलवायु में ऑक्सीजन का घटना भी कारण है, क्योंकि जंगलों में कटाई से ऑक्सीजन की मात्रा घटने स्वाभाविक ही है। (4) अल्ट्रा वायरस किरणों का खतरा भी बढ़ गया है। (5) सबसे बड़ा परिणाम हम देख रहे हैं कि जलसंकट गहराता जा रहा है क्योंकि विभिन्न प्रकार के बनाए गए बांध व मानवीय खुराफात के कारण जल अपव्यय हो रहा है।यह सबघटनाएं हम मानवीय खुरापात के कारण हो रही है और हम उन्हें रोकने में असमर्थ हो रहे हैं, अगर हमें पृथ्वी को बचाना है तो पर्यावरण को प्रदूषण से बचाना होगा, क्योंकि धरती मां को पर्यावरण प्रदूषण से बचाना परम मानवीय धर्म है,
साथियों बातें अगर हम जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप की करें तो जलवायु परिवर्तन और उससे उत्पन्न प्राकृतिक आपदाएं अब केवल भविष्य की चेतावनी नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई बन चुकी हैं। हर वर्ष हम सैकड़ों जानें, करोड़ों रुपये की संपत्ति, और बहुमूल्य पर्यावरणीय संसाधन खोते जा रहे हैं। इन सबके पीछे यदि कोई सबसे बड़ा कारण है तो वह है-मानव का प्रकृति में अनियंत्रित हस्तक्षेप। अब भी समय है कि हम अपनी विकास की परिभाषा को पुनः गढ़ें-एक ऐसी परिभाषा जो सतत हो, समावेशी हो, और पारिस्थितिकी के अनुकूल हो। यदि हमने अब भी नहीं सीखा,तो प्रकृति का प्रतिशोध कहीं अधिक विनाशकारी होगा,जिसकी कीमत पूरी मानवता को चुकानी पड़ेगी।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि नाराज़ प्रकृति की नाराज़गी से भयंकर सैलाब- प्रकृति की मानवीय कृतिय क़े लापरवाही की चेतावनी तो नहीं?प्रकृति ने मानव को जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी संसाधन दिए-मानव ने अपने स्वार्थवश इन संसाधनों का दोहन किया?धराली व किन्नौर में आपदा से तबाही- क्या यह आपदाएं प्राकृतिक चक्र है? या इसके पीछे कहीं न कहीं मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका भी है?

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318

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