नई दिल्ली।(राष्ट्र की परम्परा डेस्क) सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी और उनमें खामियों को लेकर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका (पीआईएल) शुरू की है। यह कार्रवाई उस समय हुई, जब एक अखबार में प्रकाशित खबर में पुलिस हिरासत में मौतों और सीसीटीवी निगरानी की लापरवाही का मुद्दा उजागर हुआ।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि केवल राजस्थान में ही पिछले सात–आठ महीनों के भीतर पुलिस हिरासत में 11 मौतें हो चुकी हैं। अदालत ने इसे बेहद चिंताजनक बताते हुए इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया।

गौरतलब है कि वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि देशभर के सभी पुलिस थानों में नाइट विज़न और ऑडियो क्षमता वाले सीसीटीवी कैमरे अनिवार्य रूप से लगाए जाएं। अदालत ने साफ कहा था कि पुलिस परिसरों के महत्वपूर्ण हिस्सों—जैसे लॉक-अप, पूछताछ कक्ष और प्रवेश–निकास द्वार—पर हर समय कैमरों की निगरानी होनी चाहिए। इसके साथ ही यह भी निर्देश दिया गया था कि रिकॉर्डेड फुटेज कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखा जाए और हिरासत में यातना या मौत से जुड़े मामलों की जांच के दौरान उपलब्ध कराया जाए।

लेकिन चार साल बाद भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। कई पुलिस थानों में कैमरे या तो काम ही नहीं कर रहे, या फिर फुटेज उपलब्ध नहीं कराया जाता। जांच के दौरान पुलिस अक्सर तकनीकी खराबी या रिकॉर्डिंग के गायब होने का बहाना बनाती है। इस वजह से न केवल हिरासत में होने वाले दुर्व्यवहार के मामलों की जांच प्रभावित होती है बल्कि जवाबदेही भी तय नहीं हो पाती।

सुप्रीम कोर्ट की यह स्वतः संज्ञान कार्रवाई इस बात की ओर इशारा करती है कि पुलिस तंत्र और राज्य सरकारें अदालत के स्पष्ट निर्देशों का पूरी तरह पालन करने में नाकाम रही हैं। अदालत ने संकेत दिया है कि यदि राज्यों ने शीघ्र ही सीसीटीवी कवरेज और रिकॉर्डिंग व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया, तो सख्त आदेश जारी किए जा सकते हैं।

🔴 यह मामला अब पूरे देश में पुलिस हिरासत की पारदर्शिता और मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में एक अहम पड़ाव माना जा रहा है