
नई दिल्ली, (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम पारिवारिक विवाद में 13 वर्षीय बच्चे की कस्टडी से जुड़ा अपना पुराना आदेश पलट दिया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मानसिक स्थिति और भावनात्मक ज़रूरतों को देखते हुए अब उसकी स्थायी देखभाल पिता के पास ही रहनी चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में कठोर कानूनी नियमों की बजाय बच्चे के “सर्वोत्तम हित” को सर्वोपरि मानकर लचीलापन दिखाना ज़रूरी है।
दरअसल, अगस्त 2024 में शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए बच्चे की स्थायी अभिरक्षा उसके पिता को दी थी। लेकिन इसके कुछ समय बाद मां के आग्रह पर अदालत ने बच्चे को कुछ समय के लिए मां के साथ रहने की अनुमति दी।
बच्चे में उभरे मानसिक तनाव के लक्षण
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जब बच्चा अपनी मां के साथ रहने लगा तो उसमें गहरी चिंता और तनाव के संकेत दिखने लगे। न्यायालय को यह बताया गया कि मां से अलग रहने के दौरान बच्चा अपेक्षाकृत अधिक स्थिर और मानसिक रूप से शांत था, जबकि मां के पास रहने के दौरान उसमें घबराहट, बेचैनी और भावनात्मक अस्थिरता दिखाई दी।
कोर्ट ने कहा – बच्चे की भलाई सर्वोपरि
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बच्चों के मामलों में कानूनी अधिकारों से अधिक महत्व उनके मानसिक और भावनात्मक हितों को देना चाहिए। कस्टडी विवाद कानून की किताबों से नहीं, बच्चे की भावनाओं और भलाई से तय होने चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि माता-पिता में से किसी को दोषी ठहराने के बजाय, न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह बच्चे की परिस्थिति को समग्र रूप से देखे और उसके विकास को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले।
सहयोग और सह-अस्तित्व पर ज़ोर
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों अभिभावकों से सहयोग की अपील करते हुए कहा कि माता और पिता, दोनों को ही बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और भविष्य के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में बच्चे की स्थिति में बदलाव होता है, तो माता को पुनः अदालत में आवेदन का अधिकार रहेगा।
