हमारे माता-पिता, पति-पत्नी,
पुत्र-पुत्री, मित्र, सगे सम्बन्धी,
क्या वास्तव में ये जीवनसाथी हैं,
नहीं, जीवनसाथी तो शरीर है ।
शरीर साँसे लेना बंद कर देता है,
तब कहाँ कोई भी साथ देता है,
हमारा शरीर ही केवल जन्म से
मृत्यु तक, हमारे साथ होता है।
जितना शरीर की देखभाल करेंगे,
उतने ही हम सुखी व स्वस्थ रहेंगे,
ख़ान-पान, आराम, व्यायाम इसे
जितना देंगे इससे उतना ही पायेंगे।
हमारा शरीर ही हमारा स्थायी
निवास होता है, यह याद रहे,
हमारा शरीर ही हमारी संपत्ति है,
हमारा शरीर हमारी देनदारी है।
हमारा शरीर हमारा उत्तरदायित्व है,
क्योंकि यही हमारा जीवनसाथी है,
सगा,संबंधी, मित्र स्थाई नहीं होता,
पर शरीर भी स्थायी कहाँ होता है?
आदित्य शरीर भी नश्वर होता है,
आज आपका है कल मिट्टी होता है,
जब तक इसकी देखभाल करिये,
तब तक शरीर आपके साथ होता है।
केवल आत्मा, परमात्मा-अंश है,
आत्मा ही स्थायी व अमर होता है,
आत्मा ही सच्चा जीवनसाथी है,
आदित्य आत्मा ही परमात्मा है।
नैनं छिंदंति शास्त्राणी,
नैनं दह्यति पावक:,
नचैनं क्लेव्यन्तापो,
न शोषयति मारुत:॥
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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