
बूंद बूंद जो होती निसृत
चलअविचल आकाश से
भीग भीग है जाता अंतस
शिव के इस परिभाष से
शिरा शिरा जो होती कम्पित
रुधिराई आवेगों से
ठहर ठहर हैं जाते चक्षु
शिव के इस अभिलाष से
रोम रोम जो चेतन होता
दीप ऊर्जा माला से
स्पंदन गमकित हो जाता
शिव के इस उच्छवास से
निमिष निमिष आनंद उतरता
मनमहेश छवि धर लेने से
प्रस्फुटित होती अश्रु माला
शिव के इस उद्भास से
क्षण क्षण अक्षर क्षर हो जाता
अनहद का इक गूँज ही रहता
घटित प्रज्वलित आत्मज्योति
शिव के इस चिदाभास से
* क्लीं जायसवाल
More Stories
निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज में मजदूर की दर्दनाक मौत, परिजनों ने किया विरोध प्रदर्शन, मुआवजा व नौकरी की उठाई मांग
दुर्घटनाओं की रोकथाम को लेकर यातायात पुलिस देवरिया का अभियान, 134 वाहनों का ई-चालान, 2 सीज
सलेमपुर नगर पंचायत पर अवैध वसूली का आरोप