November 21, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

आत्म- निर्भरता

लाख टके की बात कहूँगा,
मैं बिलकुल बेबाक़ कहूँगा,
कोई किसी का नहीं है अपना,
यह जीवन बस सुंदर सपना।

मुट्ठी बंद आये धरती पर,
मुट्ठी खोल के जाना होगा,
रोते रोते जन्म लिया था,
सबको रुलाकर जाना होगा।

साथ न कोई देने वाला,
हर कोई खुद में मतवाला,
साथ नही कोई आया था,
साथ नहीं कोई जाने वाला।

जीवन में सिद्धांत एक हो,
कभी न मन में कोई भेद हो,
खुद ही गिरना, गिर कर उठना,
और संभलना, यही ध्येय हो।

हर चेहरे पर तो मास्क लगे हैं,
पहचान किसी को कोई न सके,
कोशिश व्यर्थ करे क्यों भाई,
जब खुद को ही ना पहचान सके।

एक कहावत तो सुनी ही होगी,
सौ सौ चूहे खाकर हज को चली,
म्याऊँ बिल्ली के खेल निराले,
पर होती कुत्तों से है बहुत भली।

मैं खुद के गुनाह पर परदा डालूँ,
पर ज़माना ख़राब की बात करूँ,
जब ऊँचे ऊँचे महल में रह कर,
दूसरे के घर में ताक-झांक करूँ।

इतनी ग़ैरत जो मिल जाये,
अपनी मेहनत का बस पायें,
हाथ किसी को ना फैलायें,
ना किसी का छीन कर खायें।

मेरे भाग्य में जो लिक्खा है,
उतना ही खुद को मिल जाये,
‘आदित्य’ नहीं ग़म कोई होगा,
खुद मेहनत कर ही खुद खायें।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’