(राष्ट्र की परम्परा)
भारत के ग्रामीण समाज की पहचान रही है—आपसी जुड़ाव, सामूहिकता और परंपराओं की निरंतरता। लेकिन बदलते आर्थिक परिदृश्यों का सबसे बड़ा प्रभाव गाँवों में पलायन की तेज़ होती प्रवृत्ति में दिखाई दे रहा है। रोजगार की तलाश में लाखों युवा शहरों की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, और इसका असर सिर्फ उनकी आजीविका पर ही नहीं बल्कि पूरे ग्रामीण सामाजिक ढाँचे पर पड़ रहा है।
रोजगार का संकट: गाँवों में पलायन की मूल वजह
कृषि पर बढ़ती लागत, छोटी जोतों में घटती आय और आधुनिक तकनीक के कारण खेती में श्रम की जरूरत कम होना—ये सभी कारण ग्रामीण युवाओं को खेती से दूर कर रहे हैं।
इसके साथ ही—
स्थानीय उद्योगों का अभाव
मनरेगा और ग्रामीण रोजगार योजनाओं की अनियमितता
मौसम संबंधी चुनौतियाँ
सीमित आय के अवसर
इन सभी ने मिलकर गाँवों में पलायन को सबसे तेज़ी से बढ़ती सामाजिक-आर्थिक समस्या बना दिया है। शहरों की फैक्ट्रियाँ, निर्माण क्षेत्र और सर्विस सेक्टर कम समय में कमाई का आकर्षण देते हैं, जो युवाओं को गाँव छोड़ने पर मजबूर करता है।
टूटते परिवार और बदलता सामाजिक ताना-बाना
गाँवों में पलायन का सबसे गहरा प्रभाव सामाजिक जीवन पर पड़ रहा है।
बड़ी संख्या में पुरुषों के बाहर चले जाने से बुजुर्ग अकेले पड़ जाते हैं।
महिलाओं पर घर, बच्चों और खेती—तीनों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
बच्चे भावनात्मक सहारे और संस्कारों की निरंतरता से दूर हो जाते हैं।
जहाँ कभी सामूहिक निर्णय और सामाजिक एकता गाँवों की ताकत हुआ करती थी, आज वही ताना-बाना तेजी से बिखर रहा है। त्योहारों, मेलों और ग्रामीण आयोजनों की रौनक भी पहले जैसी नहीं रही।
गाँवों का धीमा होता विकास
जब कार्यशील युवा ही गाँवों से बाहर चले जाते हैं, तो:
खेतों में मजदूरों की कमी
स्कूलों में घटता नामांकन
ग्राम पंचायत स्तर पर नेतृत्व का अभाव
ये सभी मिलकर ग्रामीण विकास को धीमा कर देते हैं। कई गांवों में जमीनें खेती से खाली पड़ रही हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही है।
शहरों में भी स्थायी समाधान नहीं
दिलचस्प बात यह है कि गाँवों में पलायन करने वाले युवाओं को शहरों में भी स्थिरता नहीं मिलती।
उन्हें—
ऊँचे किराए
अस्थायी एवं असंगठित रोजगार
स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सुविधाओं की कमी
जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ता है। फिर भी वे गाँव लौटने से हिचकते हैं, क्योंकि वापस जाकर रोजगार का भरोसा नहीं होता।
समाधान: गाँवों में रोजगार के मजबूत अवसर
विशेषज्ञों के अनुसार यदि ग्रामीण क्षेत्रों में ही रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दी जाए तो पलायन को रोका जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है—
छोटे उद्योग और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ
डिजिटल एवं कौशल प्रशिक्षण केंद्र
आधुनिक कृषि तकनीक का विस्तार
महिलाओं को स्वरोजगार व SHG से जोड़ना
ग्रामीण शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना को मजबूत करना।
गाँवों को रहकर आगे बढ़ने की जगह बनाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
गाँवों में पलायन सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक संकट भी
गाँवों में पलायन को केवल रोजगार का मुद्दा मानना बड़ी भूल होगी। यह ग्रामीण संस्कृति, परिवारिक ढांचे, पारंपरिक मूल्यों और विकास की दिशा पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। यदि समय रहते इस समस्या का समाधान न किया गया, तो आने वाले वर्षों में गाँव अपनी विरासत और सामाजिक पहचान खो सकते हैं।
