June 29, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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सुखमय जीवन हेतु सविधि महालक्ष्मी आराधना आवश्यक- राघव ऋषि

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)
ऋषि सेवा समिति, देवरिया के तत्वाधान में आयोजित भागवत कथा छठवें दिन पूज्य राघव ऋषि ने कहा गोवर्धन लीला भक्ति को बढ़ाने वाली लीला है गो अर्थात भक्ति वर्धन अर्थात बढ़ाना | कुछ समय घर से बाहर निकालकर किसी पवित्र नीरव स्थान में रहकर महालक्ष्मी आराधना करके भक्ति को बढ़ाओ। जब ईश्वर के व्यापक स्वरूप का अनुभव होता है तभी भक्ति होती है। संसार-गोवर्धन प्रभु के सहारे है | अत: दुःख में विपत्ति में मात्रा प्रभु का आश्रय लो। जब जीव अपनी इच्छा को भगवान की इच्छा से मिला देती है तब यब भक्ति मार्ग में आगे बढ़ता है। भक्ति रस में इन्द्रियों को सराबोर करोगे तो रासलीला में आनन्द मिलेगा।
सम्पूर्ण भगवत में राधा शब्द का उल्लेख नहीं है क्योंकि वे शुकदेव जी की गुरु है। शुकदेव जी पूर्वजन्म में तोता थे भागवत में ”श्रीशुक उवाच” लिखा है। श्री का अर्थ है राधा | श्रीशुक में गुरु, शिष्य दोनों का नाम छिपा है केवल कृष्ण और शुकदेव का नाम के आगे ” श्री ” प्रयुक्त हुआ है । श्री अर्थात महालक्ष्मी | श्रीहरि का अर्थ है लक्ष्मीनारायण।
जीव को सर्वांगीण सुख की प्राप्ति महालक्ष्मी आराधना से होती है। यह आराधना भगवान शिव द्वारा प्रणीत है। महालक्ष्मी के कुल आठ स्वरूप हैं। जिसमें एक स्वरूप इस मृत्युलोक के लिए निर्धारित हैं चार ग्रहों- बुध,बृहस्पति, शुक, व शनि का संचालन महालक्ष्मी करती हैं। इसी आराधना को भगवान श्रीराम व कृष्ण ने किया। आराधना के प्रारम्भ ”श्रीदीक्षा” में श्रीमन्त्र ग्रहण करने से होता हैं। इसी आराधना के बल पर कभी भारत ”सोने की चिड़िया” के नाम से जाना जाता था। सौरभ ऋषि ने ”रास रच्यो है री सखी” भजन गाया जिससे श्रद्धालु मन्त्रमुग्ध हो थिरकने लगे।
कथा प्रसंग को बढ़ाते हुए राधव ऋषि ने कहा रासलीला कामविजय लीला है। कथा आती है की वेद की एक लाख ऋचाएँ ब्रह्मा के पास जाकर वे मुक्त होने के लिए प्रार्थना की ब्रह्मा ने कमण्डल से जल निकालकर उनपर छिड़का तो सभी गोपी रूप में परिणित हो गई।उन्हीं एक लाख ऋचा रूपी गोपियों ने भगवान ने नृत्य सानिध्य प्राप्त किया। गोपियों को अभिमान हो गया की उनकी साधना से भगवान उनके वश में हैं अत; भगवान बीच से ही अन्तर्ध्यान हो गए। उनके विरह में गोपियों ने जो गीत गाया यह ‘गोपीगीत’ के रूप में हैं। जीव के विरह गीत ही गोपीगीत हैं। मानव शरीर ही ब्रज हैं इसकी शोभा वस्त्राभूषणों से नहीं आपित्तु भक्ति से हैं।भक्ति निष्काम होगी तो भगवान नित्य सानिध्य देते हैं अक्रूर प्रसंग की चर्चा करते हुए राधव ऋषि ने कहा की जो क्रूर हैं वह भगवान को नहीं पाता बल्कि अक्रूर ही भगवान को पाता हैं। अपने कुटुम्ब के लिए कौआ व कुत्ता भी जीता है परन्तु जो ईश्वर के लिए जीता है उसी का जीवन सार्थक माना जायेगा। भगवान मथुरा में आये उन्हें कुब्जा ने चन्दन अर्पित किया।चन्दन और वंदन जीव को नर्म बनाते है। मथुरा के बनियों ने भगवान का स्वागत पान सुपाड़ी से किया। थोड़ा सा देकर ज्यादा लेने की आशा रखे वह बनिया है एवं कम लेकर अधिक से वो सन्त है। सन्त और ब्राह्मण थोड़ी सी दक्षिणा लेकर आशीर्वाद देते है। आयुष्मान भव ! लक्ष्मीवान भव !
भगवान ने कंस का वध किया व राज्य उग्रसेन को दिया | भगवान कृष्ण निष्काम योगी है | सांदीपनी ऋषि की सेवा करते हुए विद्या प्राप्त की। सेवा द्वारा प्राप्त विद्या सफल होती है । पुस्तक पढ़कर प्राप्त ज्ञान धन और प्रष्ठिता दिला सकता है किन्तु मन की शान्ति नहीं। उद्धव जी ज्ञानी थे भक्त नहीं। भगवान ने गोपियों के द्वारा भक्ति प्राप्त करायी।

लक्ष्मीनारायण भगवान का विवाह ही रुक्मिणी श्रीकृष्ण

     रुक्मिणी विवाह की चर्चा करते हुए पूज्य राघव ऋषि ने कहा की लक्ष्मी के भेद बताएं  हैं लक्ष्मी, महालक्ष्मी, अलक्ष्मी। लक्ष्मी-नीति, अनीति दो तरह से प्राप्त धन, साधारण लक्ष्मी हैं जिसका कुछ सदुपयोग भी होगा और कुछ दुरुपयोग भी होगा। महालक्ष्मी धर्मानुसार प्राप्त धन महालक्ष्मी हैं। धर्मानुसार श्रमपूर्वक नीतिपूर्वक से प्राप्त धन  महालक्ष्मी हैं। ऐसा धन हमेशा शुभ कार्यों में खर्च होगा।
           अलक्ष्मी-पापाचरण, अनीति से प्राप्त धन अलक्ष्मी हैं। ऐसा धन विलासिता में ही बह जायेगा और जीव को अशान्ति दे जायेगा। हिरण्यकशिपु, रावण, कंस, दुर्योधन, सिकन्दर, नौपोलियन, एडोल्फ हिटलर आदि इसके उदाहरण हैं। रुक्मिणी महालक्ष्मी ही हैं को  शिशुपाल को नहीं नारायण का वरण करती हैं। रुक्मिणी-विवाह में बड़ी धूमधाम से बारात आई व कन्यादान की परम्परा सहायक यजमान लालबाबू श्रीवास्तव द्वारा सपरिवार की गई। समिति के पदाधिकारीगण शत्रुघ्न अग्रवाल, नंदलाल गुप्ता, मोतीलाल कुशवाह, धर्मेन्द्र जायसवाल, अजय केजरीवाल, विजय केजरीवाल, अशोक श्रीवास्तव, उपेंद्र तिवारी, अश्वनी यादव, कामेश्वर कश्यप, शैलेष मणि त्रिपाठी, हृदयानंद मिश्र, हृदयानंद मणि, राजेंद्र मद्धेशिया, जितेंद्र गौड़, रामकृष्ण यादव आदि सहित अनेक गणमान्य भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की।
         कोषाध्यक्ष भरत अग्रवाल ने बताया कि सोमवार, 12 फरवरी की कथा में भगवान श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा जी से मिलन का भावपूर्ण प्रसंग है।