इतिहास के पन्नों में अमर 14 दिसंबर: देश-दुनिया को दिशा देने वाले महान व्यक्तित्वों का स्मरण
तुलसी रामसे (निधन: 14 दिसंबर 2018)
तुलसी रामसे हिंदी सिनेमा में हॉरर शैली को पहचान दिलाने वाले अग्रणी निर्माता-निर्देशक थे। उनका जन्म मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में हुआ। रामसे ब्रदर्स के बैनर तले उन्होंने ऐसी डरावनी फिल्में बनाईं, जिन्होंने 1970–90 के दशक में दर्शकों के मन पर गहरी छाप छोड़ी। वीराना, पुराना मंदिर, बंद दरवाज़ा जैसी फिल्मों ने सीमित बजट में भी रचनात्मकता और सस्पेंस का नया मानदंड स्थापित किया। तुलसी रामसे ने भारतीय सिनेमा में हॉरर को केवल डर नहीं, बल्कि मनोरंजन की सशक्त विधा के रूप में स्थापित किया। उनका योगदान आज भी इस जॉनर के निर्माताओं के लिए प्रेरणा है।
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फ़्लाइंग ऑफ़िसर निर्मलजीत सिंह सेखों (निधन: 14 दिसंबर 1971)
फ़्लाइंग ऑफ़िसर निर्मलजीत सिंह सेखों भारतीय वायुसेना के अद्वितीय वीर थे। उनका जन्म इसेवाल गाँव, लुधियाना ज़िला, पंजाब, भारत में हुआ। 1971 के भारत–पाक युद्ध के दौरान श्रीनगर एयरबेस की रक्षा करते हुए उन्होंने अद्भुत साहस दिखाया। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने दुश्मन के कई विमानों को मार गिराया और अंत तक मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनका जीवन देशभक्ति, साहस और कर्तव्यनिष्ठा का अमिट उदाहरण है।
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शैलेन्द्र (निधन: 14 दिसंबर 1966)
शैलेन्द्र हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्ण युग के महान गीतकार थे। उनका जन्म रावलपिंडी (तत्कालीन पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत; वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ। सादगी, संवेदना और दर्शन से भरे उनके गीत आम जनमानस के दिलों तक पहुँचे। मेरा जूता है जापानी, तू प्यार का सागर है, ये मेरा दीवानापन है जैसे गीत आज भी अमर हैं। राज कपूर की फिल्मों के साथ उनका रचनात्मक जुड़ाव विशेष रूप से याद किया जाता है। शैलेन्द्र ने शब्दों के माध्यम से आम आदमी की भावनाओं, सपनों और संघर्षों को स्वर दिया—यही उनकी सबसे बड़ी विरासत है।
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जॉर्ज वॉशिंगटन (निधन: 14 दिसंबर 1799)
जॉर्ज वॉशिंगटन आधुनिक अमेरिका के निर्माता और उसके प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका जन्म वेस्टमोरलैंड काउंटी, वर्जीनिया, ब्रिटिश अमेरिका (वर्तमान संयुक्त राज्य अमेरिका) में हुआ। वे सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने गए—यह उनकी असाधारण नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई और एक स्थिर लोकतांत्रिक शासन की नींव रखी। सत्ता के दुरुपयोग से दूर रहकर उन्होंने दो कार्यकाल के बाद स्वेच्छा से पद छोड़ा, जो लोकतंत्र के लिए मिसाल बना। उनका जीवन नेतृत्व, नैतिकता और राष्ट्रनिर्माण का प्रतीक है।
