रावण पराक्रमी, बुद्धिमान व ज्ञानी था,
पर मारा गया श्री राम के हाथों था,
“विनाश काले विपरीत बुद्धि” का
नारी से बार बार अभिशाप मिला था।
वेदवती महा तपस्विनी से दुर्व्यवहार
किया था उनके पूर्व जन्म में रावण ने,
नारी के कारण तेरा वध होगा श्राप
दिया हो कुपित तपस्विनी वेदवती ने।
श्रीहरिविष्णु वरण वृत की पूर्ति हेतु
तपस्विनी ने सीता का अवतार लिया,
श्रीराम की भार्या बन रावण विनाश
करवा कर पूर्वजन्म प्रतिकार लिया।
स्वर्ग विजय पाने की ख़ातिर रावण
ने इन्द्रलोक पर धावा बोल दिया,
नलकुबेर की पत्नी अप्सरा रम्भा पर
मोहित हो उस से भी दुर्व्यवहार किया।
कुबेरपुत्र नलकुबेर ने रावण को तब
श्राप दिया, परस्त्री के स्पर्श मात्र से
तेरा शरीर सौ टुकड़ों में बँट जायेगा,
नारी के कारण तेरा विनाश होगा।
रावण ने भगिनी सूर्पणखा के पति
विद्युतज्वह का वध कर डाला था,
मन ही मन में सूर्पणखा ने भी रावण
के विनाश का श्राप उसे दे डाला था।
रावण ने पत्नी मंदोदरी की भगिनी से
भी ऐसा ही दुर्व्यवहार किया व नारी
श्राप उसके विनाश का कारण था,
राम के वाणों से उसका वध तय था।
अयोध्या नरेश अनरण्य का द्वंद्वयुद्ध
में अपमान व इक्ष्वाकु वंश का रावण
ने उपहास किया, अनरण्य के श्राप से
उस वंश के राम ने रावण नाश किया।
शिवजी के गण नंदी का कैलाश में
रावण ने वानर मुख कह व्यंग्य किया,
वानर के द्वारा तेरा विनाश होगा, नंदी
ने क्रोधित हो रावण को श्राप दिया।
अहंकार में मदमस्त लंकापति रावण
अपनी सुमति दुर्मति कर बैठा था,
यह सभी वृत्तांत हैं जिनके श्राप वश
रावण कामवश मतिभ्रष्ट हुआ था।
“विनाश काले, विपरीत बुद्धि” से
रावण ने अपनी मृत्युवरण किया था,
कदाचित स्वर्ग धाम प्राप्त करना उस
के जीवन का उद्देश्य बन चुका था।
आदित्य जाको प्रभु दारुण दुःख देहीं।
ताकी मति पहिलेहि हरि लेहीं ॥
सुर रंजन मंजन महि भारा।
जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाई बैर हठि करिहौं।
प्रभु सर प्राण तज़े भव तरिहौं॥
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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