जयंती पर विशेष
भारतीय राजनीति में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो केवल सत्ता की परिभाषा नहीं बदलते, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पण की मिसाल बन जाते हैं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया उन्हीं विलक्षण व्यक्तित्वों में से एक थीं — एक ऐसी जनसेविका, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र, संस्कृति और विचारधारा की सेवा में अर्पित कर दिया।
ग्वालियर राजघराने की प्रतिष्ठित उत्तराधिकारी होने के बावजूद राजमाता का जीवन ऐश्वर्य से नहीं, बल्कि लोकसेवा और त्याग से परिभाषित हुआ। जब अधिकांश राजघराने आज़ादी के बाद सियासत से दूर हो गए, तब उन्होंने जनसेवा का मार्ग चुना। राजनीति उनके लिए सत्ता का माध्यम नहीं, बल्कि समाज-निर्माण का साधन थी।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने भारतीय जनसंघ के गठन काल में ही उसे अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने में वह भूमिका निभाई जो पुरुष नेताओं के लिए भी चुनौतीपूर्ण थी। कठिन राजनीतिक परिस्थितियों में भी वे दृढ़ता से अपने सिद्धांतों पर अडिग रहीं।
आपातकाल के दौरान जब लोकतंत्र पर पहरा लगा, तब राजमाता ने अपनी असहमति खुलकर प्रकट की और जेल जाना स्वीकार किया। उनका संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि यह उस भारतीय आत्मा की पुकार थी जो अन्याय और दमन के सामने झुकना नहीं जानती।
राजमाता का जीवन अनुशासन, सादगी और आदर्शों से ओत-प्रोत था। उन्होंने राजमहल की भव्यता छोड़कर आम जनता के बीच रहना पसंद किया। उनका व्यक्तित्व भारतीय नारी की उस परंपरा का प्रतीक था जो शक्ति और संवेदना, दोनों का सुंदर समन्वय करती है।
भारतीय जनता पार्टी के निर्माण में भी राजमाता की भूमिका अमिट रही। उन्होंने संगठन को जनाधार देने में, कार्यकर्ताओं को दिशा देने में और विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने में अनथक परिश्रम किया। उनका विश्वास था कि भारत की आत्मा तभी सशक्त होगी जब राजनीति मूल्य आधारित और राष्ट्रनिष्ठ होगी।
आज जब हम राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की जयंती मना रहे हैं, तो यह केवल एक व्यक्तित्व का स्मरण नहीं, बल्कि उन मूल्यों के प्रति श्रद्धांजलि है जिन पर उन्होंने जीवन जिया सत्य, सेवा, संस्कार और राष्ट्रप्रेम। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि राजनीति यदि राष्ट्रसेवा से जुड़ जाए, तो वह लोककल्याण का सर्वोत्तम माध्यम बन सकती है।
राजमाता केवल ग्वालियर की नहीं, बल्कि समूचे भारत की थींl एक ऐसी प्रेरणा, जो युगों-युगों तक जनसेवा का पथ आलोकित करती रहेगी।
•नवनीत मिश्र
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