
नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) देश की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर दायर एक RTI (सूचना का अधिकार) से बड़ा खुलासा हुआ है। राष्ट्रपति सचिवालय ने जानकारी दी है कि जिस दिन धनखड़ ने इस्तीफा दिया था, उस दिन उनकी राष्ट्रपति से कोई मुलाकात दर्ज ही नहीं है।
यह खुलासा हैरान करने वाला है क्योंकि उस समय मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि धनखड़ ने रात 8 बजे स्वयं राष्ट्रपति से मिलकर इस्तीफा सौंपा था। लेकिन आधिकारिक रिकार्ड में ऐसी कोई मुलाकात दर्ज नहीं है।
उठ रहे गंभीर सवाल
अब विपक्ष इस मामले को लेकर हमलावर हो गया है। सवाल खड़े हो रहे हैं कि –अगर धनखड़ राष्ट्रपति से नहीं मिले तो इस्तीफा किसने लिखा और किसने सौंपा?राष्ट्रपति ने बिना मुलाकात और औपचारिक प्रक्रिया के इस्तीफा क्यों स्वीकार किया?
क्या संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की प्रतिष्ठा और गरिमा के साथ खिलवाड़ हुआ है?
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि बीजेपी ने देश में संवैधानिक पदों का मज़ाक बना दिया है। उनका कहना है कि यह मामला सिर्फ औपचारिकता का नहीं, बल्कि संविधान की मर्यादा और संस्थानों की साख से जुड़ा है।
राष्ट्रपति सचिवालय का जवाब RTI में राष्ट्रपति सचिवालय ने साफ किया है कि उस दिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की राष्ट्रपति से कोई भेंट का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इस जवाब ने पूरे घटनाक्रम पर संदेह की परतें और गहरी कर दी हैं।
संवैधानिक प्रक्रिया पर सवाल संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति का इस्तीफा राष्ट्रपति को लिखित रूप में व्यक्तिगत रूप से सौंपना आवश्यक है। लेकिन यदि धनखड़ ने स्वयं यह प्रक्रिया पूरी नहीं की, तो फिर क्या संवैधानिक नियमों की अनदेखी हुई?
विपक्ष का रुख विपक्ष अब सरकार से सीधा जवाब मांग रहा है –
- इस्तीफे की असल कॉपी किसके हस्ताक्षर से तैयार हुई?
- राष्ट्रपति को इस्तीफा किसने सौंपा?
- प्रक्रिया का पालन किए बिना स्वीकृति क्यों दी गई?
नतीजा यह मामला अब एक बड़े राजनीतिक और संवैधानिक विवाद का रूप ले चुका है। आने वाले दिनों में संसद से लेकर सियासी