डाॅ.अरविन्द पांडेय
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः।।
अर्थात :- आठ चक्र और नौ द्वारों वाली अयोध्या देवों की पुरी है, उसमें प्रकाश वाला कोष है, जो आनन्द और प्रकाश से युक्त है।
अथर्ववेद का ये श्लोक पावन नगरी अयोध्या को समर्पित है। हिंदुओ के सात पवित्र नगरियों में से एक अयोध्या सरयू नदी के तट पर महर्षि मनु द्वारा बसाई गई थी। वेदों के अनुसार सूर्यवंशी राजाओं की कर्मभूमि रही यह पावन नगरी कोशल राज्य की राजधानी थी। कालांतर में इसी नगरी में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ और तब से लेकर आज तक ये हिन्दू संस्कृति और अस्मिता की परिचायक है।
मान्यता है कि इस नगरी के वैभव और समृद्धि की तुलना महर्षियों द्वारा स्वर्ग से की जाती थी।राज्य में प्रजा की खुशहाली और न्यायपूर्ण मर्यादित आचरण का बोध इतना प्रबल था कि सदियों तक भारतवर्ष में प्रजातांत्रिक व्यवस्था के सफल क्रियान्वयन को रामराज्य स्थापित करने से जोड़ कर देखा जाता रहा है। त्याग और समर्पण के जीवित प्रतिमूर्ति रहे प्रभु श्रीराम के आचरण को सदियों तक आदर्श स्वरूप स्वीकारा जाता है। इसी धरा पर प्रभु श्री राम के 14 वर्षों के वनवास के उपरांत रावण वध कर, असत्य पर सत्य की जीत स्थापित कर, अयोध्या की पावन धरती पर लौटने पर अयोध्यावासियों ने अयोध्या का कोना–कोना दीयों के प्रकाश से जगमगा दिया था। तब से लेकर आज तक सनातन संस्कृति का परिचायक दीपोत्सव का त्यौहार प्रत्येक वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन उतने ही उमंग, हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं में इस नगरी को सत्य को स्थापित करने वाले शक्ति के केंद्र के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि सदियों से भारतीय जनमानस इस पावन धाम को अटूट श्रद्धा की दृष्टि से देखता आया है। सनातन संस्कृति में अयोध्या के महत्त्व को पहचान कर ही बाबर द्वारा इसे तहस–नहस करने का प्रयास किया गया था। हालांकि परतंत्रता की जंजीरों में जकड़े हिन्दू समाज ने आक्रांताओं द्वारा इस नगरी के विध्वंस के बाद ना केवल समय-समय पर अपनी इस पावन धरा को स्वतंत्र कराने के लिए शक्ति से प्रतिकार किया अपितु लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद भी कानूनी रूप से इसे स्वतंत्र कराने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी। इस दौरान लाखों हिंदू श्रद्धालु अपनी इस पावन माटी को स्वतंत्र कराने के लिए बलिदान हो गए। वर्ष 1672 में निहंग सिखों के साथ मिलकर चिमटाधारी साधुओं ने अपने आराध्य प्रभु श्री रामचंद्र की जन्म भूमि की रक्षा के लिए मुगलो के साथ हुए भीषण युद्ध में अपना बलिदान दिया। आजादी के बाद भी तुष्टीकरण की राजनीति पर चलने वाले दलों ने पावन अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के मंदिर की स्थापना करने की इच्छा रखने वाले सैकड़ों राम भक्तों की हत्या कर दी थी।
बावजूद इसके सनातन संस्कृति के अस्मिता की परिचायक अयोध्या को स्वतंत्र करने के लिए हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा। करीबन 500 वर्षों तक अंधकार के युग के बाद वर्ष 2020 में भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदुओं के असीम श्रद्धा का केंद्र रहे प्रभु श्री रामचंद्र जी के जन्म भूमि को स्वतंत्र करने का आदेश जारी किया। जहां अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शिलान्यास के बाद प्रभु श्री रामचंद्र जी के विराट मंदिर का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में है।
धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े हुए देशद्रोहियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चाहे कितना भी सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया जाए, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि यह फैसला सहिष्णु हिंदू धर्म का उसके आराध्य की जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने के सतत संघर्ष का परिणाम है।
इसे महज़ संयोग ही कहा जाएगा कि राम जन्मभूमि के इस फैसले के पूर्व से ही उत्तर प्रदेश में गोरक्षपीठ पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में एक ऐसी सरकार है, जिसने इस फैसले से पूर्व ही अयोध्या की संस्कृतिक पहचान के पुनरुत्थान के लिए प्रयास प्रारंभ कर दिया था।
कुछ वर्षों पहले तक जिस अयोध्या में बड़े पैमाने पर दीपोत्सव के पर्व पर दिया जलाना महज कोरी कल्पना का हिस्सा हुआ करता था। आज वहां लाखों दिए प्रज्वलित किए जा रहे हैं। यह निश्चित ही दुनिया को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का पाठ पढ़ाने वाले सनातन संस्कृति की सामूहिक शक्ति की चेतना के उत्थान का घोतक है। आप सौभाग्यशाली समय में हैं कि इसके प्रत्यक्ष साक्षी बन रहे हैं।
(लेखक असिस्टेंट प्रोफेसर, बीआरडीबीडी पीजी कालेज, आश्रम बरहज, देवरिया में हैं)
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