
नई दिल्ली,(राष्ट्र की परम्परा)। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई को लेकर देश की सियासत गरमा गई है। सोमवार को 152 सांसदों द्वारा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपे जाने के बाद इस प्रक्रिया ने औपचारिक रूप लिया। इसी कड़ी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से उनके आधिकारिक आवास पर मुलाकात की, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल और तेज कर दी है।
सूत्रों के अनुसार, इस अहम मुलाकात में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव की रणनीति और संवैधानिक प्रक्रिया को लेकर व्यापक चर्चा की संभावना जताई जा रही है। न्यायमूर्ति वर्मा उस समय सुर्खियों में आए थे जब इस वर्ष की शुरुआत में उनके आवास से बड़ी मात्रा में जले हुए नोट बरामद किए गए। इस मामले ने न्यायपालिका की गरिमा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।
विभिन्न दलों का समर्थन
संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत दायर किए गए इस महाभियोग प्रस्ताव को राजनीतिक दलों की व्यापक सहमति प्राप्त है। भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, सीपीआई(एम) समेत अन्य दलों के सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए अपने हस्ताक्षर किए हैं।
हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख नेताओं में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, एनसीपी की सुप्रिया सुले, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल, भाजपा सांसद पीपी चौधरी और राजीव प्रताप रूडी जैसे दिग्गज शामिल हैं।
महाभियोग की संवैधानिक प्रक्रिया
संविधान के अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित होना आवश्यक होता है। इसके लिए न्यायिक आचरण समिति की जांच रिपोर्ट और दोनों सदनों की मंजूरी जरूरी होती है। यह प्रक्रिया भारत के लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु बेहद संवेदनशील और दुर्लभ मानी जाती है।
विपक्ष और सत्ता पक्ष की एकजुटता
इस प्रकरण में खास बात यह है कि सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी कांग्रेस सहित कई दलों ने एक स्वर में न्यायिक नैतिकता की बात करते हुए प्रस्ताव का समर्थन किया है। इससे संसद में प्रस्ताव के पारित होने की संभावना भी बढ़ गई है।
आगे की राह
अगर यह प्रस्ताव पारित होता है तो यह भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में उन विरले मामलों में शामिल होगा, जब किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई सफलतापूर्वक पूरी की जाएगी। इस मुद्दे को लेकर देशभर की निगाहें संसद की कार्यवाही और राष्ट्रपति की मंजूरी पर टिकी हुई हैं।
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