
नई दिल्ली, (राष्ट्र की परम्परा) आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 की आधी रात को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का एक काला अध्याय शुरू हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के 21 महीनों को आज पूरा देश “संविधान हत्या दिवस” के रूप में याद कर रहा है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र और संविधान पर किए गए हमलों को याद करते हुए तीखा हमला बोला और देशवासियों से संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सतर्क रहने की अपील की।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कई पोस्ट साझा कर कहा कि “कोई भी भारतीय यह कभी नहीं भूलेगा कि आपातकाल के दौरान संविधान की भावना का किस तरह से उल्लंघन किया गया।” उन्होंने कहा कि वह दौर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के सबसे अंधकारमय समयों में से एक था।
मोदी ने लिखा, “आपातकाल के दौरान संविधान में निहित मूल्यों को दरकिनार किया गया, मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस की स्वतंत्रता को कुचल दिया गया और हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और आम नागरिकों को जेल में डाल दिया गया। ऐसा लग रहा था जैसे सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार ने पूरे लोकतंत्र को बंधक बना लिया हो।”
प्रधानमंत्री ने 42वें संविधान संशोधन को भी निशाने पर लेते हुए कहा कि यह उस समय की सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति का स्पष्ट प्रमाण था, जिसे बाद में जनता पार्टी सरकार ने पलट दिया।
मोदी ने अपने संदेश में उन सभी लोगों को भी सलाम किया जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने लिखा, “वे लोग भारत के कोने-कोने से थे – हर क्षेत्र, हर पृष्ठभूमि और हर विचारधारा से। उनके दिलों में एक ही संकल्प था – भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की रक्षा करना।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार संविधान में निहित सिद्धांतों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने वादा किया कि भारत प्रगति की नई ऊंचाइयों को छुएगा और गरीबों, वंचितों व दलितों के सपनों को साकार करेगा।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी, ताकि आने वाली पीढ़ियों को यह याद रहे कि लोकतंत्र को कमजोर करने के क्या खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।
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