युद्ध जीत भी जाना तो
हे पार्थ, तुम रहना सजग।
धृतराष्ट्र सदा ही आयेंगे,
गले लगाने तुमको पग-पग।
है युगों युगों का सत्य यही,
तुम भूल न जाना पार्थ कभी।
जो अपनों जैसे लगते हैं,
वो ही तो बहुधा छलते हैं।
आलिंगन में अस्थियाँ तोड़ते,
वह निज कुटुंब के अंश ही थे।
विश्वास में भरे हुए विष से,
हे पार्थ, सदा ही बचना तुम।
कर्ण समान महादानी भी,
वंचित रहा स्नेह के रथ से ।
सूतपुत्र कह कर जग ने,
छल डाला उसको ही पथ में ।
शकुनि की मृदु वाणी में,
घृणा का गुप्त बीज रहा।
अपनों के मध्य वह अवशोषित पर,
हानिकारक भी वही रहा ।
भीष्म, द्रोण सम न्यायप्रिय,
फिर भी बंधन ग्रस्त रहे।
मोह और कर्तव्य के व्यूह ने
सत्य से उनको दूर किया ।
मत भूलो पार्थ, सखा सदा,
रणभूमि से कठिन है जीवन।
धोखे के शस्त्र यहाँ चलते,
मुस्कानों में छिपा मरण ।
हे पार्थ यही जग का नियम,
युगों युगों से यही विधान।
युद्ध से भय जो ना भी हो
संबंधों की रखना पहचान ।
युद्ध जीत भी जाना तो
हे पार्थ, तुम रहना सजग।
धृतराष्ट्र सदा ही आयेंगे,
गले लगाने तुमको पग-पग।
डॉ. सोनी सिंह