Thursday, December 25, 2025
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राज्यसभा में बिहार के एसआईआर मुद्दे पर विपक्षी दलों की चर्चा की माँग तेज़, खड़गे ने उपसभापति को लिखा पत्र

नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) राज्यसभा में विपक्षी दलों की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। खड़गे ने इस मुद्दे पर उच्च सदन में चर्चा की माँग दोहराते हुए बुधवार को राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को एक औपचारिक पत्र लिखा।

खड़गे ने अपने पत्र में कहा कि एसआईआर की प्रक्रिया से बिहार के करोड़ों मतदाताओं, विशेष रूप से समाज के कमजोर, हाशिए पर खड़े और अल्पसंख्यक वर्गों के मताधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनावी साल में इस प्रक्रिया को जिस तरीके से लागू किया जा रहा है, वह निष्पक्षता और पारदर्शिता के मापदंडों पर सवाल खड़े करता है।

उन्होंने यह भी कहा कि, “यह मुद्दा लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह मताधिकार और नागरिक सहभागिता से संबंधित है। राज्यसभा को इस पर न सिर्फ विचार करना चाहिए, बल्कि इस पर गंभीर बहस होनी चाहिए।”

पत्र में खड़गे ने इस बात का भी उल्लेख किया कि अतीत में राज्यसभा के सभापति ने “एक प्रतिबंध के साथ, दुनिया की हर चीज़” पर चर्चा की अनुमति दी है, जो कि संसदीय परंपराओं की व्यापकता और लचीलापन दर्शाता है। ऐसे में बिहार जैसे संवेदनशील राज्य में मतदाता सूची के पुनरीक्षण जैसे विषय पर चर्चा को वरीयता दी जानी चाहिए।

खड़गे ने यह भी स्पष्ट किया कि विपक्ष किसी भी राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह मुद्दा उठा रहा है। उन्होंने सरकार से इस प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने और आयोग की जवाबदेही तय करने की भी माँग की।

राजनीतिक पृष्ठभूमि में बढ़ता महत्व
गौरतलब है कि बिहार आगामी विधानसभा चुनावों की दहलीज़ पर खड़ा है। ऐसे में एसआईआर की प्रक्रिया में गड़बड़ी या भेदभाव की आशंका राजनीतिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील बन गई है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि यह प्रक्रिया सत्तारूढ़ दल के इशारे पर कुछ समुदायों को मतदाता सूची से हटाने या वंचित करने के लिए की जा रही है।

विपक्ष की इस माँग से साफ है कि चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर देश के उच्च सदनों में बहस और विमर्श अब केवल प्रशासनिक प्रक्रिया न होकर राजनीतिक विमर्श का प्रमुख हिस्सा बन चुका है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उच्च सदन इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है और सरकार की प्रतिक्रिया क्या होती है।

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