Saturday, November 1, 2025
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पर्यवेक्षक मौन

शब्दों की मधुरता जीवन में रिश्तों
को मज़बूती से बाँध कर रखती है,
जैसे गीली मिट्टी पेड़ पौधों की जड़ों
को मज़बूती से पकड़ कर रखती है।

रिश्तों की मज़बूती हमारे जीवन में
मित्रों और परिवार के लिये संबल है,
संयम और धैर्य जीवन के अवलंबन,
और चरित्र निर्माण के लिये संबल हैं।

सहनशीलता मनुष्य की ताक़त का
बहुत बड़ा एवं अद्भुत गुण होता है,
वहीं बदला लेने का विचार मात्र ही,
मंज़िल की पहली कमजोरी होता है।

मंज़िल और लक्ष्य दोनो का ही
शाब्दिक अर्थ तो एक ही होता है,
पर साधना को मंज़िल की जगह
लिखें तो अधिक स्पष्ट होता है।

बिलकुल ही यथार्थ है यह जिज्ञासा,
शाब्दिक अर्थ दोनो शब्दों का एक है,
मंज़िल तो राहों की जगह लिखा है,
जिसका उपयोग लक्ष्य प्राप्ति का है।

जीवन में जब भी खराब दौर आते हैं,
सबके मन में यह विचार आते जाते हैं,
ईश्वर यह परेशानी देखता क्यों नहीं,
हमारे दुःख दर्द दूर करता क्यों नहीं।

पर याद रखिए, जब परीक्षा चलती है
तब मौजूद पर्यवेक्षक मौन ही रहते हैं,
आदित्य वैसे ही ईश्वर भी दुखों की
घड़ी में हमारी परीक्षा ही तो लेते हैं।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’

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