घड़ी की क़ीमत कितनी भी हो
समय नहीं वश में कर पाती है,
कितना भी शक्तिमान कोई हो
नियति न कभी वश में आती है।
पद की महिमा से मिला मान,
क्षण भंगुर सा ही रह पाता है,
लेकिन कर्मों से सम्मान मिले,
सारा जीवन कायम रहता है।
सोच सकारात्मक हो जीवन में,
हरदम सुख ही सुख मिलता है,
कर्कस आवाजों की ध्वनि से भी,
कानो में संगीत सुनाई पड़ता है।
नृत्य लगे गतिविधि पैरों की,
घुँघूरु सी रुनझुन बजती है,
होंठों पर छोटी सी मुसुकाहट,
हँसी ठहाके जैसी लगती है।
हर भाव प्रार्थना बन जाते,
हर सोच सुहानी लगती है,
रौनकें जीने की आतीं, आदित्य
रचनात्मकता सी भर जाती है।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र’आदित्य’
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