July 5, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

मेरी रचना, मेरी कविता

बारिस आयी बिजली चली गयी
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बारिस आयी बिजली चली गयी,
गर्मी कुछ कम हुई उमस बढ़ गयी,
सावन सावन जैसा नही लग रहा,
अब भी जेठ की तरह ही तप रहा।

थोड़ी थोड़ी बारिस में ही पता
चल गया शासन प्रशासन के,
इस अभूतपूर्व नगर प्रबंधन का,
नाली नाले सड़कों पर तालाबों का।

नाली का पानी सड़कों पर,
सड़कों का पानी घर के भीतर,
नर्क बन गए गाँव शहर सब,
कोश रहे वर्षा ऋतु को सब।

पहली बारिस आयी है अब,
सूख गए जब हरे खेत सब,
का बरखा जब कृषि सुखानी,
समय चुके पुनि का पछितानी।

जनता कोश रही शासन को,
शासन डाट रहा जनता को,
मंत्री डाँट रहे अधिकारी को,
अधिकारी डाँटे कर्मचारी को।

बारिस नहीं हुई तो भी तड़पाये,
जब हो जाये तो भी तो तड़पाये,
कंकरीट के फैले हैं यह जंगल,
इनमे रहकर मंगल कौन मनाये।

भूजल का दोहन अंधाधुँध हो रहा,
वर्षाजल संरक्षण कोई नहीं कर रहा,
महल बन गये लाखों और करोड़ों के,
पर बारिस का पानी नाली में जा रहा।

आधा सावन भी है बीत गया,
नहीं पड़े पेड़ों में झूले अब तक,
आदित्य विश्वभर में बढ़ती गर्मी,
काटें पेंड़ पर्यावरण बिगड़ने तक।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ

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