विद्यार्थी जीवन की यह शिक्षा विद्वान
शिक्षकों की आज याद दिलाती है,
अगर कोई एक पुस्तक लिख लेता है,
तो उसे पुत्ररत्न जैसी प्राप्ति होती है।
कितना सत्य कथन वह अब लगता है,
जब मैने एक पुस्तक लिख डाली है,
पुत्र पुत्री रत्न दिए हैं ईश्वर ने स्वयं,
कविताधर्मिता माँ सरस्वती ने दी है।
अपनों परायों का जीवन शत वर्ष
या उसके आस पास होता होगा,
कविता रूपी पुस्तक-पुत्र प्रकृति
के अंत तक जग में व्याप्त रहेगा।
आप सरस्वती कृपा के वरद हस्त हो,
कविता कृति पटुता में सिद्धहस्त हो,
अंबर पर जब तक सूरज चाँद रहेगा,
आदित्य कविताओं का नाम रहेगा।
यह सब लिखकर एक सुधी मित्र ने
कविता लिखने के लिये प्रशंसा की,
अमृतपान समान कविता जीवन भर
सारे जग को निरंतर प्रोत्साहन देगी।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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