दादा बड़ा न भैया,
सबसे बड़ा रुपैया ।
सब पैसे का खेल है,
और कछू ना भैया ।।
मंदिर मे दिया जाऊँ तो
हमें लोग चढ़ावा कहते हैं,
स्कूल कालेज में शिक्षा शुल्क,
शादी में दो तो सगुन या दहेज।
तलाक देने पर गुजारा भत्ता,
किसी को उधार दो तो कर्ज,
कोर्ट में कोर्ट फ़ीस या जुर्माना,
सरकार ले तो टैक्स या हर्जाना।
नौकरी करने से मिले तो वेतन,
सेवानिवृत्त पर मिले तो पेंशन,
किडनेपर के लिएं फिरौती,
होटल में वेटर को बख़्शीस।
बैंक से उधार लो तो ऋण,
श्रमिकों के लिये मज़दूरी,
अवैध रूप से लो तो रिश्वत,
किसी को भेंट दो तो गिफ्ट।
मैं पैसा हूँ, मुझे मरने के बाद
कोई ऊपर नहीं ले जा सकता,
पर जीते जी ही मैं आपको,
बहुत ऊपर ले जा सकता हूँ।
मैं पैसा हूँ, आप सब मुझे
पसंद करते इस हद तक कि,
लोग मुझे देखकर आपको
नापसन्द करने लग जाएँगे ।
मैं काला हूँ या सफ़ेद हूँ क्या,
फ़र्क़ पड़ता है इससे मेरे लिये,
या फिर अन्य किसी के लिये,
मैं जैसा भी हूँ पूजा जाता हूँ ।
मैं भगवान् तो नहीं पर लोग,
मुझे उस से कम भी नहीं मानते,
आदित्य मैं पैसा हूँ, मैं पैसा हूँ,
ज़रा सोचिए, विचार कीजिये।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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