November 21, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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मार्क्सवादी इतिहासकार नहीं मानते वैज्ञानिक सबूत: डॉ. केके मोहम्मद

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन संवाद भवन में आयोजित विशिष्ट व्याख्यान सत्र को संबोधित करते हुए पद्मश्री डॉ. केके मोहम्मद ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एवं जेएनयू के मार्क्सवादी इतिहासकारों ने अयोध्या साइट से उत्खनन में प्राप्त अध्ययन सामग्री को लेकर मिथ्या प्रचार किया है। वे न तो पुरातत्वविद हैं और न ही वह पुरातत्व सामग्री के वैज्ञानिक विश्लेषण को समझने में समर्थ हैं। अपने व्याख्यान में उन्होंने स्पष्ट किया कि अयोध्या से उत्खनन में मिली मूर्तियों व स्तम्भ वहां किसी हिंदू धार्मिक स्थल के मौजूद होने के पुख्ता प्रमाण देते हैं। अयोध्या से प्राप्त स्तंभ पर पूर्ण कलश अंकित है, जो कि हिन्दू धर्म में समृद्धि एवं वैभव का प्रतीक है।
इसमें उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस्लाम में मूर्ति पूजा निषेध है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अयोध्या से प्राप्त कई हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां इस्लाम से कैसे संबंधित हो सकती हैं? उन्होंने अलीगढ़ के इतिहासकारों के प्रपंच एवं झूठ को वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर उजागर किया।
उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि मुसलमानों को पाकिस्तान के रूप में एक अलग देश देने के बावजूद भी भारत एक सेक्युलर देश है, क्योंकि यह एक हिंदू बहुल देश है। मुसलमानों को यह चाहिए कि जो भी ऐतिहासिक विकास गुजरे हुए सदियों में हुआ, उससे एक सबक लेकर मथुरा और ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान को हिंदुओं को खुद ही उपहार की तरह सौंप देना चाहिए और उनकी जो पवित्र इमारत है, उसे कहीं अन्य उपयुक्त स्थल पर स्थानांतरित करने के लिए मुसलमान लोगों को आगे आना चाहिए। इससे सरकार एवं सर्व समाज से चतुर्दिक सहयोग भी मिल सकेगा। इस स्थानांतरण की प्रक्रिया में पवित्रता एवं सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
अपने सुझाव के क्रम में उन्होंने अंत में कहा कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की वर्तमान हालात ठीक नहीं है। सरकार को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि उत्खनन में प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों की रेप्लीका की मार्केटिंग, ब्रांडिंग और पैकेजिंग की भी जरूरत है, जिससे पुरातत्व अवशेषों को विशेष महत्व मिल सके और भारतीय सभ्यता-संस्कृति को व्यापक पैमाने पर रेखांकित किया जा सके।