समय बीत जाता है यादें रह जाती हैं,
कहानी ख़त्म, निशानी रह जाती है,
रिश्ते बने रहते होंठों की हँसी बनकर,
या कभी कभी आँखों में प्रेमाश्रु बन कर।
इन सबमें वह प्रेम छिपा होता है,
जो आजकल किंचित मिलता है,
लोगों में नफ़रत का बोलबाला है,
संभल संभलकर रहना पड़ता है।
लोग सामने कुछ और कहते हैं,
पर पीठ पीछे कुछ और कहते हैं,
डरते वे लोग ईश्वर से भी नहीं,
उसे भूलकर ही ऐसे क़र्म करते हैं।
दीपावली पावन पर्व आ गया है,
धनतेरस मिल कर आज मनाना है,
प्रेम सुधा माँ लक्ष्मी हर घर बरसें,
कोने कोने में दीपक सजाना है।
दीवाली के शुभ अवसर पर आइये
व्यसन छोड़ कर चरित्र निर्माण करें,
नशा मुक्त भारत हो जाये कुछ ऐसा,
हम सब मिलकर अच्छा काम करें।
लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा पूजन कर
उनका ससम्मान विसर्जन करना है,
नहीं फेंकना इधर उधर या मंदिर में,
मिट्टी की हैं तो मिट्टी में दबा देना है।
द्युतक्रीड़ा,पर्यावरण प्रदूषित करना,
जैसे सारे दुर्व्यसनों से भी बचना है,
आदित्य दीपावली की बधाईयाँ हैं,
और यही हार्दिक शुभकामनायें हैं।
- डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’