November 23, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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जीवन में असफलताओं से सीखने की

गोंदिया – भारत में बड़े बुजुर्गों की कहावतों का बहुत अधिक महत्व है, जो हमेशा प्रत्यक्ष रूप से सही साबित होती है। हो सकता है कि उसको कुछ वक्त जरूर लगता है परंतु हमेशा सटीक साबित होती है। जैसे थोथा चना बाजे घना और नाच ना आए आंगन टेढ़ा इन दोनों कहावतों की चर्चा आज हम इसलिए कर रहे हैं कि 7 और 8 दिसंबर 2022 को आए एमसीडी और 2 राज्यों के चुनाव के नतीजों में हम देख रहे हैं कि कई चौंकाने वाले नतीजे आए। मसलन 15 वर्षों से काबिज़ एमसीडी की सरकार को हराकर एक नई उभरती पार्टी ने जीत हासिल किया और सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी के 100 से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जप्त होकर 9 में से 7 उम्मीदवार एक ही समुदाय के जीते और दोनों राज्यों में भी नतीजे चौंकाने वाले हैं। 

साथियों महत्वपूर्ण नामी व्यक्तियों उम्मीदवारों के गढ़ में रिजल्ट अनपेक्षाकृत रहे हैं जिसे हम लगातार टीवी चैनलों और मीडिया के माध्यम से देख रहे हैं। परंतु जो चुनाव के पहले बातें होती थी उसे हम अब हम, थोथा चना बाजे घना और अब चुनावी रिजल्ट के बाद आए बयानों को हम नाच ना आए आंगन टेढ़ा की कहावतों से जोड़कर देखें तो, यह दोनों ही कहावतें बिल्कुल सटीक फिट बैठती है। याने रिजल्ट के पूर्व क्या कहा जाता था और रिजल्ट आने के बाद किस तरह अपनी खामियों असफलताओं को दूसरों के साथ जोड़ा जा रहा है। याने दूसरों के सर फोड़ाड़ा जा रहा है। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से विस्तृत क्षेत्र में इन दोनों कहावतें की ओरिजिनलिटी पर चर्चा करेंगे। थोथा चना बाजे घना – नाच ना आवे आंगन टेढ़ा। 

साथियों बात अगर हम इन दोनों कहावतों को मिलाकर उसके अर्थ की करें तो किसी भी व्यक्ति संस्था दल या देश में असल में इतनी योग्यता बल शक्ति ताकत या सामर्थ्यता नहीं होती जितनी सफलता अर्जित करने की वह बातें करते हैं या फिर उनका रिजल्ट नेगेटिव आने पर अपनी असफलताओं अकौशलता या विफलता को का दोष हमेशा दूसरों पर, परिस्थितियों या उपलब्ध स्थिति सिद्ध-सामग्री पर डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। जबकि हमें एक बात याद रखना चाहिए कि जीवन में असफलताओं से हमें सीख कर अपनी कमजोरी मानकर फिर से उस पर जीत हासिल करने के लिए लड़ना चाहिए। अपनी कमियों का अध्ययन कर उसे सुधारना चाहिए जबकि दूसरों पर दोष मड़ने की प्रवृति हमेशा घातक सिद्ध होती है। परंतु हम उनमें सीखने की बजाय अपनी कर्मठता का डंका बजाना चाहते हैं जो उचित नहीं है। 

साथियों बात अगर हम दोनों कहावतों के शाब्दिक अर्थ समझने की कोशिश करें तो, थोथा चना बाजे घना – कम ज्ञान या गुण वाला व्यक्ति ज्यादा बढ़ा चढ़ा कर बात करता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान इसका बड़ा उदाहरण है, जिसकी स्थिति मजबूत नहीं है फिर भी हमेशा भारत को नुकसान पहुंचाने की बात करता lस्वनाम धन्य लब्धप्रतिष्ठ झूठ के पुलिंदा जुम्लाबाज बादशाह इसके जीते जागते उदाहरण हैं जो अपने दिल की बात कहते और करते गए बस वादा निभाना भूल गए, इसका लोकोक्ति का भावार्थ ये है कि जो व्यक्ति कम ज्ञानी होता है वो ज्ञानी होने दिखावा बहुत करता है और बड़ी-बड़ी बाते करके अपनी कमी को छुपाने का प्रयास करता है और ये दिखाने का प्रयत्न करता है कि वो ही सर्वश्रेष्ठ हैं। नाच न आवे आँगन टेढ़ा लोकोक्ति का अर्थ – अपनी असफलताओं को स्वीकार नहीं करके उसका दोष दूसरों पर डालना है। वाक्य प्रयोग – चुनाव के समय वह डंके की चोट पर कहते थे कि चुनाव हम ही जीतेंगे परंतु हार गए तो चुनाव एक साथ हुए और फलानें  द्घिंके की कमजोरी हुई कहते हैं। अपने घर और आसपास हमने कई बार बड़े-बुजुर्गों को नाच न जाने आँगन टेढ़ा कहावत बोलते हुए सुना होगा। इस मुहावरे का प्रयोग उस समय किया जाता है जब हम कोई काम करने में असफल हो जाते हैं और कारण पूछने पर किसी दूसरी चीज़ पर आरोप लगा देते हैं। आज के व्यस्त जीवन में कोई काम सीखना नहीं चाहता, लेकिन अपनी कर्मठता का डंका बजाना सभी चाहते हैं। 

साथियों यह बात किसी पर लागू नहीं होती, बल्कि सबसे जुड़ी हुई है। बच्चे, बूढ़े सभी अपना दोष छिपाते हैं और दूसरे के सिर पर दोष मढ़ देते हैं। जब कोई दूसरा दोषी ठहराने लायक नहीं मिलता, तो कार्य की साधन-सामग्री को ही दोषी ठहरा दिया जाता है किसी से चित्र अच्छा नहीं बनता, तो वह कहता है कि कागज और रंग में खराबी है। कोई अच्छा गा नहीं पाता, तो इसका सारा दोष वाद्ययंत्रों पर थोप देता है। अपना दोष औरों पर आरोपित करने की इसी प्रवृत्ति को ‘नाच न जाने आँगन टेढ़‘ लोकोक्ति के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। इस घातक प्रवृत्ति से हमें बचना चाहिए और अपनी गलतियों को स्वीकार कर लेने में हिचक का अनुभव नहीं करना चाहिए।ये एक कहावत है जो हमारे देश में काफी प्रसिद्ध भी है। इसके अर्थ को हम विभिन्न दृष्टिकोण से देख सकते हैं। साहित्यिक अर्थ-अपनी असफलताओं को स्वीकार न करके दोष दूसरों के सर डालना। मनोवैज्ञानिक अर्थ-अपनी गलतियों या असफलताओं को तार्किक ढंग से छुपाने की कोशिश करना। लौकिक अर्थ-काम करना आता नहीं और बहाने तैयार। तात्पर्य है ,हम अपनी बुराई ना देख कर दूसरी चीज में ही बुराई निकाल रहे हैं ,अर्थात कुछ काम हमें नहीं आता हम उस चीज को नहीं देख रहे बल्कि हम दूसरे को ही बुरा बना रहे हैं, अर्थात नाच नहीं आ रहा और बहाना बना दिया आंगन टेढ़ा है। 

साथियों बात अगर हम अपनी असफ़लता और हार का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने से अच्छा अपनी हार मान कर उसका विश्लेषण कर उससे सीखने के संकल्प की करें तो, अपनी असफलताओं पर, अपनी हार पर कभी दुखी नहीं होना चाहिये, कभी आँसू नहीं बहाना चाहिये। और ना ही हिम्मत हारकर हाथ पर हाथ रखकर बैठना चाहिये। अपनी असफलताओं के कारणों का पता करों, अपनी हार की वजह तलाश करो। और उनसे सीख लेकर फिर से प्रयास करें। और तब तक प्रयास करते रहें, जब तक सफल ना हो जाएं। अगर एडिसन 999 असफलताओं के बीच कभी भी हार मान लेते तो एक हज़ार वें बार में क्या बल्ब का अविष्कार कर पाते। ध्यान रखें,विपरीत परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं और कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ देते हैं।असफलता सिर्फ एक मौका है, दोबारा से शुरू करने का। लेकिन इस बार ज्यादा समझदारी से। अपनी असफलताओं, अपनी गलतियों का अफ़सोस ना मनाएं। बल्कि उसे सीखने के एक मौके की तरह लें। उससे सीखें और ज्यादा समझदारी से, ज्यादा मेहनत से दोबारा अपने काम पर, अपने लक्ष्य पर लग जायें। और तब तक लगे रहें जब तक हम सफल ना हो जायें। हर असफलता हमको एक सही रास्ता दिखाती है। थोड़ी सी और दृढ़ता, थोडा सा और प्रयास, और जो एकनिराशाजनक असफलता दिख रही थी, वह एक शानदार सफलता में बदल सकती है।असफलता के बारे में हमारा ऐटिट्यूड ही निर्धारित करेगा कि हमको एक निराशाजनक असफलता मिलेगी या शानदार सफलता। अगर हम असफलता का अफ़सोस मनायेंगे और हाथ पर हाथ रखकर बैठ जायेंगे और कुछ नहीं करेंगे तो हमको असफलता ही मिलेगी। लेकिन अगर आप असफलता का अफ़सोस ना मना के, उससे सीखकर दोबारा से शुरुआत करेंगे, फिर से प्रयास करेंगे तो हमको सफलता जरुर मिलेगी। हम अपनी सोच से, अपने एटिट्यूड से अपनी परिस्थितियों को बदल सकते हैं। अपनी जिंदगी को बदल सकते  हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि थोथा चना बाजे घना, नाच न आए आंगन टेढ़ा। दो राज्यों और एमसीडी चुनाव के नतीजों से हमें सीखने की ज़रूरत है। जीवन में असफलताओं से सीखने की बजाय हमें उसका दोष दूसरों पर मड़ने की घातक प्रवृत्ति से बचना चाहिए।आज के व्यस्त जीवन में अपनी असफ़लताओं से कुछ सीखने की बजाय हम अपनी कर्मठता का डंका बजाना चाहते हैं।

संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र