भागलपुर/देवरिया(राष्ट्र की परम्परा)
नरियांव में श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन बृहस्पतिवार को लोकप्रिय कथावाचक शैलेन्द्र शास्त्री ने भक्तजनों को ध्रुव,प्रह्लाद कथा सहित हिरण्यकश्यप के उद्धार की अलौकिक कथा का विस्तार से बखान किया।
ध्रुव की भगवान नारायण के प्रति अविरल आस्था के वर्णन के दौरान श्रद्धालुओं की आंखों में आंसुओ की धारा बहने लगी। श्रद्धालु गण भाव विभोर होकर ध्रुव की भक्ति का आनंद उठा रहे थे। इस दौरान वरिष्ठ, गणमान्य, समाजसेवी सहित सहित सैकड़ों भक्तजन धर्मप्रेमी जनता उपस्थित रही !श्रीमद्भागवत कथा पुराण के चौथे दिन शैलेन्द्र शास्त्री के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की जन्म की लीला की कथा सुनाई गयी। उन्होने कहा कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था, रास्ते में आकाशवाणी हुई ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा। यह सुनकर कंस वासुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनय पूर्वक कहा मेरे गर्भ से जो संतान होगी उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है। इसके बाद कंस कुछ नरम होते हुए अपनी बहन की बात को मान लेता है। सभी श्रोताओं ने अन्य दिनों की भांति भागवत कथा का बहुत ही मधुर भाव से श्रवण किया।
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