November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

एक व्यंग है, मुस्कुराना नि:शुल्क है

बातें शानदार हों न हों व्यंग्य तो है,
बहुत शानदार हो या थोड़ा कम हो,
लिखा है कि आप हँसे और ख़ूब हँसे,
क्योंकि हँसना मुस्कुराना नि:शुल्क है।

भारत वर्ष नदियों का मुल्क है,
पानी भी कहीं कम कहीं भरपूर है,
पर फिर भी बोतल में बिकता है,
एक बोतल का बीस रूपये शुल्क है।

भारत वर्ष गरीबों का मुल्क है,
ग़रीबी व जनसंख्या भी भरपूर है,
परिवार नियोजन कम लोग मानते हैं,
जबकि यहाँ नियोजन नि:शुल्क है।

भारत वर्ष कितना अजीब मुल्क है,
यहाँ निर्बलों निर्धनों पर हर शुल्क है,
अगर आप अमीर हैं या हैं बाहुबली
तो हमारे यहाँ हर सुविधा नि:शुल्क है।

भारत वर्ष अपना ही प्यारा मुल्क है,
करने को हो तो भी कर सकते नहीं,
कहने को है पर कह कुछ सकते नहीं,
इतना ज़रूर है, बोलना नि:शुल्क है।

भारत वर्ष शादियों का भी मुल्क है,
यहाँ दान दहेज देते लेते भी खूब हैं,
हाँ, शादी करने के लिये पैसा नहीं,
जबकि कोर्ट में शादी नि:शुल्क है।

भारत वर्ष पर्यटन का भी मुल्क है,
यहाँ बसें, मेट्रो और रेलें भी खूब हैं,
बिना टिकट न चलना, पकड़े गए तो,
कारागार में रोटी कपड़ा नि:शुल्क है।

भारत वर्ष अजीब अद्भुत मुल्क है,
हर जरूरत पर हर एक को शुल्क है,
बात अच्छी है, ढूंढ कर देते हैं लोग,
मसविरा यहाँ बिलकुल नि:शुल्क है।

भारत वर्ष आम आवाम का मुल्क है,
यहाँ रहकर नेता चुनने का हक भी है,
पर ज़्यादातर लोग वोट देने जाते नहीं,
जबकि भारत में मतदान नि:शुल्क है।

गंजे को बालों की दवा चाहिये,
बाल बढ़ जायँ तो नाई चाहिये,
काले हैं तब तक क्रीम चाहिए,
सफ़ेद हो जायें, ख़िजाब चाहिये।

भारतवर्ष में गरीब की भूख मिटे,
खूनपसीने की कमाई, दो जून रोटी,
तन ढकने के लिए कपड़ा चाहिए,
सोने को आदित्य फुटपाथ चाहिये।

हंसने में क्या जाता, गरीब हो तो भी,
अमीरों के ठाठ हैं, उनसे बचकर रहो,
जेल में रह यहाँ चुनाव जीत जाते हैं,
तो भी हँसना मुस्कुराना नि:शुल्क है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ